शिमला। एक तरफ जहां समोसे पर सियासत गर्म है, दूसरी तरफ शिमला में वोकेशनल शिक्षक सर्द रातों में धरने पर डटे हुए हैं। ठंड में भी वोकेशनल शिक्षकों के हौसले बुलंद हैं।
निजी कंपनियों को बाहर का रास्ता दिखाने और नीति निर्माण की मांग को लेकर शिमला के चौड़ा मैदान में शिक्षक सातवें दिन भी धरने पर डटे हुए हैं।
महिला शिक्षक अपने छोटे बच्चों के साथ धरने पर बैठी हैं। 11 वर्ष से सेवाएं दे रही इन महिला शिक्षिकाओं की धरने दौरान अपनों की याद और परिवार की जिम्मेदारियां ने आंखें नम कर दी और आंखों से आंसू छलक पड़े।
शिक्षकों ने साफ तौर पर सरकार को चेतावनी दी है कि उनका यह धरना जारी रहेगा। उन्हें धरना समाप्त करने की कोई भी शर्त कतई मंजूर नहीं है।
वोकेशनल शिक्षक संघ के महासचिव नीरज बंसल ने कहा कि उनका धरना सात दिन से जारी है। इस दौरान उनकी प्रदेश परियोजना अधिकारी से भी बात हुई हुई।
उन्होंने कहा कि सरकार वार्ता के लिए तैयार है, लेकिन शर्त यह है कि शिक्षकों को अपना धरना समाप्त करना होगा और उसके बाद ही शिक्षा मंत्री से बात हो सकेगी।
नीरज बंसल ने कहा कि उन्हें सरकार और विभाग की यह शर्त मंजूर नहीं है। बिना किसी शर्त के सरकार उन्हें वार्ता का न्यौता दे अन्यथा यह धरना अनिश्चितकाल के लिए जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि अब आश्वासनों से बात नही बनेगी। उन्होंने कहा कि उनकी सिर्फ एक मांग है कि सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों को बाहर रखा जाए।
हिमाचल प्रदेश के करीब 1100 स्कूलों में कुल 2174 वोकेशनल शिक्षक हैं। इन कंपनियों को बाहर किया जाए और और जो फंड केंद्र से आ रहा है, उसे सीधे सरकार उन्हें प्रदान करे।
वहीं, बच्चों के साथ धरने पर बैठी शिक्षिकाओं ने कहा कि वे भी अपने परिवार से दूर अपने हक के लिए धरने पर बैठी हैं। चंबा के दूरदराज क्षेत्र से धरने में शामिल होने आई आरती ठाकुर ने कहा कि वह 11 वर्ष से सेवाएं दे रही हैं।
अपने अधिकार के लिए महिला होने के बावजूद वह यहां धरने पर बैठी हैं। मानसिक प्रताड़ना के कारण आंसू जरूर यहां छलके हैं, लेकिन परिवार के प्यार और विश्वास के बावजूद वह अपने हक की लड़ाई के लिए यहां धरने पर डटे हैं।
उन्होंने कहा यहां काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बावजूद इसके उनकी एक मांग है कि कंपनियों को बाहर कर सरकार उन्हें अपने अधीन करे।
बच्चे के साथ धरने पर बैठी सोलन से आई शिक्षिका दीपिका राणा ने कहा कि यहां काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा रहा है।
बावजूद इसके सरकार से एक मांग है कि इन कंपनियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाए। उन्होंने कहा कि बच्चे के साथ आई हैं, जिससे उन्हें काफी परेशानी भी हो रही है, लेकिन सरकार से आस है कि जल्द वह उनकी पुकार सुन ले।