धर्मशाला। आर्जीमोन सीड इन दिनों सुर्खियों में है। आर्जीमोन सीड मिला सरसों तेल खाने के बाद कांगड़ा जिला के खुंडियां के लगड़ू गांव में 58 साल के एक व्यक्ति के निधन के बाद कांगड़ा जिला प्रशासन अलर्ट है। स्वास्थ्य विभाग भी वर्किंग मोड में आ गया है। लगड़ू के पीड़ित परिवार ने जिस दुकान से बीज खरीदा था और दुकानदार ने जहां से लिया था वहां से सरसों बीज के सैंपल लेकर जांच को भेजे गए हैं। अब तक राहत की बात है कि पीड़ित परिवार के अलावा अन्य किसी ने भी बीज भारी मात्रा में नहीं खरीदा है।
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आर्जीमोन प्वाइजन आखिर है क्या और यह लोगों के लिए कितना हानिकारक है। साथ ही बाजार में बिकने वाले बोतल बंद तेल और लोकल किसानों द्वारा उगाई सरसों में आर्जीमोन सीड मिलावट की कितनी संभावनाएं हैं, यह हम आपको बताते हैं। आर्जीमोन मेक्सिकाना इसका वैज्ञानिक नाम है और हिंदी में इसको भड़भाड़, सत्यानाशी या घमोई कहा जाता है। आम बोलचाल में कटइया बोलते हैं। यह पौधा सर्दियों में फूल देता है।
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इस कंटीले पौधे की पत्तियां चौड़ी होती हैं। इसमें पीले फूल निकलते हैं जिसके बाद सरसों की फली की तरह ही छोटी गोल फली निकलती है। इसमें सरसों के दाने की तरह काले बीज होते हैं। इससे सरसों के बीजों में इनकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है। इन बीजों से हल्के पीले रंग का गैर खाद्य तेल निकलता है, जिसमें जहरीला रसायन होता है। हालांकि, इसके बारे जानकारी होने पर किसान खेतों में ही इसे पहचान कर निकाल सकते हैं।
इस आर्जीमोन सीड को अगर सरसों के दानों के साथ मिलाकर इनसे निकले तेल का इस्तेमाल किया जाए तो ड्रॉप्सी नामक बीमारी का खतरा होता है। ड्रॉप्सी ऐसी बीमारी है जिसमें पीड़ित व्यक्ति की जान बचाना काफी मुश्किल हो जाता है। ड्रॉप्सी क्या है इसके बारे में भी आपको बताते हैं।
ड्रॉप्सी रोग सरसों के तेल में अर्जीमोन तेल के मिलावट, सायनाइड के मिलावट या उजला रंग करने वाली मिलावट के कारण होता है। लूज मोशन, दोनों पैरों में सूजन, सांस फूलना, न्यूमोनिया, अनियमित धड़कन, सिर दर्द, खून की कमी, धुंधला दिखना आदि ड्रॉप्सी के लक्षण हैं।
मिलावटी सरसों का तेल प्रयोग करने से मनुष्य के जिगर, पित्ताशय, गुर्दे, हृदय आदि अंग कमजोर हो जाते हैं। मनुष्य को साधारण पानी भी नहीं पचता। उसके शरीर में दूषित पानी जमा हो जाता है और पेट फूलने लगता है। मनुष्य के हाथ पैर व मुंह में सूजन आ जाती है। मनुष्य को बुखार भी आ सकता है। डॉप्सी काफी खतरनाक बीमारी है।
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इससे मनुष्य को पैरालिसिस होने का खतरा भी पैदा हो जाता है। चिंता की बात ये है कि ड्रॉप्सी रोग का कोई संतोषजनक इलाज नहीं है। यदि रोगी को तुरंत चिकित्सा उपलब्ध हो जाए तो वह बच सकता है। हार्ट फेलियर का इलाज डिजॉक्सिन जैसी दवा देकर करते हैं। कार्टिकोस्टेराड दवाएं भी दी जाती है। रोगी को ऊंचे दर्जे की प्रोटीनयुक्त खुराक दी जाती है।
लोकल किसानों द्वारा उगाई जाने वाली सरसों में आर्जीमोन की मिलावट की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता है। हालांकि, बोतलबंद तेल के लिए FSSAI एक्ट में इसको लेकर प्रावधान किए गए हैं। मुख्य चिकित्सा अधिकारी कांगड़ा डॉ. गुरदर्शन गुप्ता ने बताया कि ज्वालामुखी के खुड़ियां क्षेत्र में मामला आने के बाद डीसी कांगड़ा डॉ. निपुण जिंदल ने मल्टी डिपार्टमेंट टीम गठित की गई है। इसमें एसडीएम, बीएमओ, फूड सेफ्टी ऑफिसर, लोकल एसएचओ को शामिल किया गया है। पीड़ित परिवार ने जहां से सरसों के बीज खरीदे थे वहां से सैंपल लेकर कंडाघाट भेज दिए हैं।
साथ ही होलसेलर से भी सैंपल लेकर भेजे गए हैं। अभी तक की जांच में पता चला है कि इस परिवार के अलावा किसी और ने थोक में सरसों का बीज नहीं खरीदा है। बोतल बंद तेल में आर्जीमोन सीड की मिलावट को लेकर सीएमओ डॉ. गुरदर्शन गुप्ता ने बताया कि FSSAI एक्ट के अनुसार सरसों तेल मेन्यूफेक्चर को सर्टिफिकेट देना पड़ता है कि तेल में आर्जीमोन नहीं है। पर यह व्यवस्था मेन्यूफेक्चर करने वालों के लिए ही है। कंपनी में अगर 15 टीन भी उत्पादन हो रहा है तो भी यह सर्टिफिकेट देना पड़ता है। अगर कोई रजिस्ट्र नहीं है और
बीज व तेल बेच रहा तो उसके लिए ऐसा नहीं है। हमारे लिए लोगों को स्वास्थ्य पहले है। इसलिए फूड सेफ्टी टीम को खुले में बिक रहे सरसों बीज के सैंपल लेने के लिए कहा है। लोकल में किसानों द्वारा उगाई जाने वाली सरसों में आर्जीमोन सीड की मिलावट को लेकर सीएमओ डॉ. गुरदर्शन गुप्ता ने कहा कि यह एक खरपतवार है और सरसों के खेत में उग जाता है।
हालांकि इसकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है। पर समझदार किसान इसकी पहचान कर इसे निकाल देते हैं। उन्होंने कहा कि सरसों के बीज के सैंपल की रिपोर्ट आने के बाद आगामी कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।