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क्या कोई तोड़ पाएगा वीरभद्र सिंह का विधानसभा चुनाव का रिकॉर्ड?

चार अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़कर जीते

शिमला। हिमाचल विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के नाम एक रिकॉर्ड है। यह रिकॉर्ड शायद ही कोई तोड़ पाए। यह रिकॉर्ड है सबसे अधिक विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़कर जीतने का। वीरभद्र सिंह ने चार अलग-अलग विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीते हैं। वीरभद्र सिंह 9 बार विधायक रहे। रोचक पहलू यह है कि वीरभद्र सिंह अपने घर में कोई चुनाव नहीं लड़ सके। क्योंकि रामपुर सीट रिजर्व के फेर में फंसी रही। यह सीट शुरू से ही एससी के लिए रिजर्व है। इसके चलते वीरभद्र सिंह को अपने घर के बाहर कर्मभूमि की तलाश करनी पड़ी। उन्होंने रोहड़ू को चुना।

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पर 2012 में रोहड़ू क्षेत्र भी एससी के लिए आरक्षित हो गया। वीरभद्र सिंह जुब्बल कोटखाई से दो, रोहड़ू से पांच, शिमला ग्रामीण और अर्की से एक-एक बार चुनाव जीता। वह जुब्बल कोटखाई से चुनाव हारे भी हैं। वीरभद्र सिंह ने विधानसभा चुनाव का सफर जुब्बल कोटखाई से शुरू किया और अर्की में सफर समाप्त हुआ।

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सेंटर की राजनीति से वीरभद्र सिंह ने 1983 में राज्य की राजनीति में कदम रखा था। उन्होंने जुब्बल कोटखाई से उपचुनाव लड़ा और जीते। 1983 में पहली बार मुख्यमंत्री बने। 1985 का चुनाव भी वीरभद्र सिंह ने जुब्बल कोटखाई से जीता। 1990 में उन्होंने रोहड़ू और जुब्बल कोटखाई से चुनाव लड़ा। रोहड़ू सीट पर जीत दर्ज की पर जुब्बल कोटखाई से हार गए। 1993, 1998, 2003 और 2007 में भी रोहड़ू से विधानसभा गए। डिलिमिटेशन के बाद 2012 में रोहड़ू की सीट भी एससी के लिए रिजर्व हो गई।

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वीरभद्र सिंह को यहां से भी पलायन करना पड़ा और शिमला ग्रामीण को अपनी कर्मभूमि चुना। 2012 का चुनाव शिमला ग्रामीण से लड़कर जीत दर्ज की। 2017 में एक बार फिर उन्होंने विधानसभा सीट बदली। इस बार अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह के राजनीतिक करियर के चलते उन्होंने ऐसा किया। उन्होंने शिमला जिला को छोड़कर दूसरे जिले के विधानसभा क्षेत्र में चुनाव लड़ा। सोलन जिला के अर्की से चुनाव लड़कर जीते। उनके राजनीतिक सफर का अर्की अंतिम विधानसभा क्षेत्र रहा। 8 जुलाई 2021 को उनका निधन हो गया।

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वीरभद्र सिंह 6 बार मुख्यमंत्री रहे हैं। 1983, 1985, 1993, 1998, 2003, 2012 में मुख्यमंत्री रहे। 1998 में वह 20 दिन दिन ही मुख्यमंत्री के पद पर रहे। बहुमत न मिलने पर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 1998 में पंडित सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस और निर्दलीय विधायक रमेश धवाला के बूते सरकार बनाई थी।

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