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भारत में बेरोजगारी दर 5.8 फीसदी से गिरकर 4.2 प्रतिशत पर पहुंची

वित्त मंत्री में संसद में पेश की आर्थिक समीक्षा

नई दिल्ली। भारत में बेरोजगारी की दर 2018-19 में 5.8 प्रतिशत से गिरकर 2020-21 में 4.2 प्रतिशत पर आ चुकी है। सावधिक श्रम बल सर्वे (पीएलएफएस) में सामान्य स्थिति के अनुसार पीएलएफएस 2020-21 (जुलाई-जून) में श्रम बल सहभागिता दर (एलएफपीआर), श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर) और बेरोजगारी दर (यूआर) में पीएलएफएस 2019-20 तथा 2018-19 की तुलना में ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में महिलाओं और पुरुषों दोनों में सुधार आया है। यह जानकारी केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने  संसद में ‘आर्थिक समीक्षा 2022-23’ पेश करते हुए दी।

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उन्होंने बताया कि 2018-19 के 55.6 प्रतिशत की तुलना में पुरुषों के लिए श्रम बल सहभागिता दर 2020-21 में 57.5 प्रतिशत पर पहुंच गई है। 2018-19 के 18.6 प्रतिशत की तुलना में महिलाओं के लिए श्रम बल सहभागिता दर 2020-21 में 25.1 प्रतिशत पर पहुंच गई है। 2018-19 के 19.7 प्रतिशत से 2020-21 के 27.7 प्रतिशत की तुलना में ग्रामीण महिला श्रम बल सहभागिता दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

रोजगार में व्यापक स्थिति के अनुसार, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में रूझान से प्रेरित, 2019-20 के मुकाबले 2020-21 में स्वरोजगार वाले लोगों का हिस्सा बढ़ा और नियमित मजदूरी/वेतनभोगी श्रमिकों के हिस्से में गिरावट आई। आर्थिक समीक्षा के अनुसार, कार्य के उद्योग पर आधारित, कृषि से जुड़े श्रमिकों का हिस्सा 2019-20 के 45.6 प्रतिशत से मामूली रूप से बढ़कर 2020-21 में 46.5 प्रतिशत पर पहुंच गया, इसी अवधि के दौरान विनिर्माण का हिस्सा 11.2 प्रतिशत की तुलना में मामूली रूप से गिरकर 10.9 प्रतिशत पर आ गया, निर्माण का हिस्सा 11.6 प्रतिशत से बढ़कर 12.1 प्रतिशत हो गया तथा व्यापार, होटल और रेस्तरां का हिस्सा 13.2 से गिरकर 12.2 प्रतिशत हो गया।

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2019 और 2020 में 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को समाहित किया गया, युक्तिसंगत बनाया गया तथा चार श्रम संहिताओं नामतः मजदूरी पर संहिता, 2019 (अगस्त 2019) औद्योगिक संबंध संहिता, 2020, सामाजिक सुरक्षा पर संहिता 2020 तथा पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कामकाजी स्थिति संहिता 2020 (सितम्बर 2020) में सरलीकृत किया गया। समीक्षा के अनुसार, संहिताओं के तहत बनाए गए नियमों को केंद्र सरकार, राज्य सरकार तथा उपयुक्त स्तर पर सुपुर्द किया गया। 13 दिसम्बर, 2022 को 31 राज्यों ने मजदूरी पर संहिता, 28 राज्यों ने औद्योगिक संबंध संहिता के तहत, 28 राज्यों ने सामाजिक सुरक्षा पर संहिता के तहत तथा 26 राज्यों ने पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कामकाजी स्थिति संहिता के तहत प्रारूप नियमों का पूर्व प्रकाशन भी किया है।

आर्थिक समीक्षा महिला श्रम बल सहभागिता दर की गणना में माप मुद्दों को रेखांकित करता है। भारतीय महिलाओं की निम्न एलएफपीआर के समान विवरण परिवारों तथा देश अर्थव्यवस्था के लिए अभिन्न कामकाजी महिलाओं की वास्तविकता से चूक जाती हैं। समीक्षा डिजाइन और कन्टेंट के माध्यम से रोजगार की माप अंतिम एलएफपीआर अनुमानों में एक उल्लेखनीय अंतर पैदा कर सकते हैं और पुरूष एलएफपीआर की तुलना में महिला एलएफपीआर के लिए यह ज्यादा मायने रखता है।

समीक्षा में कहा गया है कि काम की माप करने के दायरे को विस्तारित करने की आवश्यकता है, जिसमें विशेष रूप से महिलाओं के लिए रोजगार के साथ-साथ उत्पादक कार्यकलापों का एक बहुत व्यापक क्षेत्र शामिल है। नवीनतम आईएलओ मानकों के अनुसार, उत्पादक कार्य को श्रम बल सहभागिता तक सीमित करना संकीर्ण है और कार्य को केवल एक बाजार उत्पाद की तरह माप करता है। इसमें महिलाओं के बिना भुगतान वाले घरेलू कार्य के मूल्य को शामिल नहीं किया जाता, जिसे जलावन एकत्र करने, खाना बनाने, बच्चों को पढ़ाने आदि जैसे खर्च बचाने वाले कार्य के रूप में देखा जा सकता है और जो परिवार के जीवन स्तर को बढ़ाने में उल्लेखनीय रूप से योगदान देते हैं।

समीक्षा में अनुशंसा की गई है कि ‘कार्य’ की समग्र माप के लिए फिर से डिजाइन किए गए सर्वेक्षण के माध्यम से उन्नत मात्रा निर्धारण की आवश्यकता हो सकती है। इसके अनुसार, श्रम बाजार में शामिल होने में महिलाओं को स्वतंत्र विकल्प देने में सक्षम बनाने के लिए जेंडर आधारित नुकसानों को दूर करने की अभी और अधिक गुंजाइश है। किफायती क्रेच सहित इकोसिस्टम सेवाएं, कैरियर, काउंस्लिंग/आरंभिक सहायता, रहने एवं परिवहन आदि कि सुविधा से समावेशी एवं व्यापक विकास के लिए जेंडर लाभ प्रकट करने में और अधिक सहायता मिल सकती है।

नवीनतम एएसआई वित्त वर्ष 2020 के अनुसार, संगठित विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार ने, प्रति फैक्ट्री रोजगार में धीरे-धीरे बढ़ोत्तरी करते हुए समय के साथ निरंतर वृद्धि का रूझान जारी रखा है। रोजगारपरकता में सुधार के साथ रोजगार सृजन सरकार की प्राथमिकता है। वित्त वर्ष 2022 के दौरान ईपीएफ धारकों की संख्या में वित्त वर्ष 2021 की तुलना में 58.7 प्रतिशत वृद्धि तथा वित्त वर्ष 2019 के महामारी पूर्व वर्ष की तुलना में 55.7 प्रतिशत वृद्धि रही। वित्त वर्ष 2023 में ईपीएफओ के तहत जोड़े गए शुद्ध औसत मासिक ग्राहक अप्रैल-नवम्बर, 2021 के 8.8 लाख की तुलना में अप्रैल-नवम्बर, 2022 में 13.2 लाख तक पहुंच गए।

औपचारिक क्षेत्र पेरौल वृद्धि के त्वरित परिवर्तन का कारण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने, कोविड-19 रिकवरी चरण के बाद रोजगार सृजन में वृद्धि करने तथा सामाजिक सुरक्षा लाभों के साथ नये रोजगार के सृजन को प्रोत्साहित करने तथा महामारी के दौरान खो चुके रोजगार की बहाली के लिए अक्तूबर, 2022 में लॉन्च की गई आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना (एबीआरवाई) हो सकती है।

श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने असंगठित श्रमिकों के राष्ट्रीय डाटा बेस के सृजन के लिए ई-श्रम पोर्टल का विकास किया है, जिसे आधार के साथ सत्यापित किया जाता है। इसमें श्रमिकों की रोजगारपरकता की अधिकत्म प्राप्ति करने तथा उन्हें सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ प्रदान करने के लिए उनके नाम, पेशा, पता, व्यवसाय का प्रकार, शैक्षणिक योग्यता और कौशल प्रकार आदि जैसे विवरणों को संकलित किया जाता है। यह प्रवासी श्रमिकों, निर्माण श्रमिकों, गिग तथा प्लेटफार्म श्रमिकों आदि सहित असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का अबतक का पहला राष्ट्रीय डाटा बेस है। वर्तमान में ई-श्रम पोर्टल सेवाओं के निर्बाधित सुगमीकरण के लिए एनसीएस पोर्टल तथा असीम पोर्टल के साथ लिंक किया गया है।

31 दिसम्बर, 2022 तक, ई-श्रम पोर्टल पर कुल 28.5 करोड़ से अधिक असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का पंजीकरण किया जा चुका है। कुल में से महिला पंजीकरणों की संख्या 52.8 प्रतिशत थी तथा कुल पंजीकरणों में से 61.7 प्रतिशत 18-40 वर्ष के आयु समूह के थे। राज्य वार कुल पंजीकरणों में से लगभग आधे उत्तर प्रदेश (29.1 प्रतिशत), बिहार (10.0 प्रतिशत) तथा पश्चिम बंगाल (9.0 प्रतिशत) के थे। कृषि क्षेत्र श्रमिकों ने कुल पंजीकरणों में 52.4 प्रतिशत का योगदान दिया जिसके बाद स्थानीय एवं घरेलू श्रमिक (9.8 प्रतिशत) और निर्माण श्रमिक (9.1 प्रतिशत) का स्थान रहा।

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