अमृतसर। हिमाचल के मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने आज पंजाब के अमृतसर में ऐतिहासिक वाघा बॉर्डर पर भव्य बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी का अवलोकन किया। वाघा बॉर्डर पर प्रत्येक दिन भारतीय सीमा सुरक्षा बल और पाकिस्तान के सुरक्षा बल द्वारा बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी का आयोजन किया जाता है।
मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने देश के कोने-कोने से आए लोगों के साथ इस सेरेमनी का आनंद उठाया। उन्होंने बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी में हिस्सा लेने वाले जवानों को मिठाइयां बांटी और उनके शौर्य और समर्पण की सराहना की। मुख्यमंत्री अटारी-वाघा बॉर्डर में जीरो पॉइंट पर भी गए।
उन्होंने कहा कि भारतीय सेना और अर्धसैनिक बलों ने आवश्यकता पड़ने पर हर बार अपने प्राणों की आहुति देकर देश की अखंडता और संप्रभुता को अक्षुण्ण रखा है। उन्होंने कहा कि अपने सैनिकों पर हम सभी को गर्व है।
आईजी जालंधर रेंज बीएसएफ व हिमाचल काडर के आईपीएस अधिकारी डॉ. अतुल फुलझेले ने इस अवसर पर मुख्यमंत्री का स्वागत किया और उन्हें एक पौधा भेंट किया।
इस दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर विनय कुमार सक्सेना, हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव भरत खेड़ा, अन्य गणमान्य व्यक्ति तथा बड़ी संख्या में देश विदेश के नागरिक उपस्थित थे।
शिमला।हिमाचल प्रदेश विधानसभा मानसून सत्र के छठे दिन सतापक्ष द्वारा लाए गए स्टाम्प संशोधन विधेयक पर सदन में खूब हंगामा हुआ। विपक्ष ने आरोप लगाया कि लोकतंत्र की हत्या कर बिल पास किया गया है। इसके विरोध ने विपक्ष ने सदन से वॉकआउट किया।
नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि सरकार ने 10 गुणा वृद्धि के साथ सदन में स्टाम्प संशोधन विधेयक लाया, जिसका बोझ आम जनता पर पड़ेगा। जब बिल को प्रस्तुत किया गया तो सत्तापक्ष के पास बहुमत नहीं था, लेकिन सरकार ने लोकतंत्र की हत्या करते हुए बिल को पास किया है, जिसका विपक्ष ने विरोध किया और सदन से वॉकआउट किया है।
नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि जब बिल लाया गया तो कांग्रेस के 17 और बीजेपी के 19 विधायक सदन में थे। इसलिए बहुमत विपक्ष के पास था और बिल अपने आप ही गिर गया है, लेकिन लोकतंत्र की हत्या करते हुए विधानसभा अध्यक्ष ने बिल पर दूसरी बार वोटिंग करवाई, जोकि नियमों के खिलाफ है। बिल में दस गुणा स्टाम्प ड्यूटी बढ़ाई गई है, जो आम आदमी पर बोझ डालेगी।
हिमाचल राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा कि राजस्व विभाग ने कई वर्ष बाद सरकार ने बदलाव के लिए काम किया है, जिससे लोगों के जमीन से संबधित मामलों के निपटारे में तेजी आएगी। क्योंकि अभी तक के आंकड़ों की बात करें तो डिमार्केशन सहित कई मामले निपटारे के लिए लंबित पड़े हैं। ऐसे में भू राजस्व संशोधन और स्टाम्प संशोधन विधेयक बिल भी सेब की भांति राजस्व विभाग में मील का पत्थर साबित होगा।
शिमला।हिमाचल विधानसभामानसून सत्र के छठे दिन ठियोग से विधायक कुलदीप सिंह राठौर ने सदन में नियम 61 के तहत सेब का मुद्दा उठाया और यूनिवर्सल कार्टन लागू करने की सरकार से मांग की। बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा कि सरकार ने इस वर्ष से सेब को वजन के हिसाब से बेचने का निर्णय लिया, जिसका बागवानों को फायदा हुआ है।
अगले सेब सीजन से हिमाचल सरकार टेलिस्कोपिक कार्टन को बंद कर यूनिवर्सल ग्रेडिंग कार्टन लेकर आएगी, जिसमें फुल बॉक्स में 24 किलो और हॉफ बॉक्स में 12 किलो की पैकिंग ही आएगी।
कुलदीप सिंह राठौर ने सदन में कहा कि किलो के हिसाब सेब खरीदने का फैसला सही है, लेकिन यह पूरी तरह लागू नहीं हो पाया, क्योंकि अभी टेलीस्कोपिक कार्टन का बाजार में चलन है, जिससे बागवानों में इसको लेकर भ्रम की स्थिति रही और प्रदेश के बाहर की मंडियों में इस तरह की व्यवस्था नहीं है। जिससे राज्य सरकार को भी नुकसान हुआ है, इसलिए सरकार से यूनिवर्सल कार्टन लागू करने की मांग की गई।
कुलदीप राठौर ने कहा कि खेती फायदे का सौदा नहीं है। लागत बढ़ती जा रही है, लाभ कम मिल रहा है, सरकार को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। बागवानी को बचाने की जरूरत है। केंद्र सरकार ने विदेशी सेब के आयात पर ड्यूटी घटाई इसे 70 फीसदी किया जाए। विपक्ष भी इसमें सहयोग करे।
वहीं, बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी ने सदन में कहा कि बागवानों की मांग पर वजन के हिसाब से सेब बेचने का फैसला सरकार ने लिया है, जिसे पूरी सख्ती से लागू किया गया है। सभी फलों को वजन के हिसाब से बेचा जा रहा है, आज तक सेब बागवानों को इतने अच्छे दाम नहीं मिले।
नियमों की उल्लंघना पर अब तक आढ़तियों पर 22 लाख रुपए से ज्यादा का जुर्माना किया गया है। अगले साल से यूनिवर्सल ग्रेडिंग कार्टन अनिवार्य किया जाएगा और टेलिस्कोपिक कार्टन को बंद किया जाएगा, जिससे एक बॉक्स में 24 किलो की ही पैकिंग आएगी।
हिमाचल विधानसभा में स्वास्थ्य मंत्री ने दी जानकारी
शिमला।हिमाचल में मेल/फीमेल हेल्थ वर्कर की भर्ती बैच वाइज करने का सरकार को कोई विचार नहीं है। यह जानकारी हिमाचल विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान ज्वालामुखी के विधायक संजय रत्न के सवाल के जवाब में स्वास्थ्य मंत्री डॉ धनी राम शांडिल ने दी है।
जानकारी में बताया कि वर्तमान में स्टाफ नर्सिज, फार्मासिस्ट और लैब तकनीशियनों की भांति मेल/फीमेल हेल्थ वर्कर के भर्ती और पदोन्नति नियमों में बैचवाइज के प्रावधान से संबंधित संशोधन करने के लिए कोई भी प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन नहीं है।
हिमाचल के कांगड़ा जिला के फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र के विधायक भवानी पठानिया के सवाल के जवाब में शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर ने जानकारी दी है कि फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र में स्कूलों में 238 पद रिक्त चल रहे हैं। इसमें प्रिंसिपल का 1, लेक्चरर स्कूल न्यू के 35, डिप्लोमा इन फिजिकल एजुकेशन के 5, सुपरिटेंडेंट ग्रेड दो को 5, सीनियर असिस्टेंट के 12, क्लर्क/जेओए आईटी के 17, लेबोरेटरी अटेंडेंट के 16, क्लास फोर के 9, टीजीटी का 1, क्लासिकल और वर्नाकुलर टीचर के 81, हेड टीचर के पांच, जेबीटी के 51 पद खाली हैं। जानकारी में बताया कि रिक्तियों को भरना और नए पद सृजित करना एक सतत प्रक्रिया है। राज्य सरकार आरएंडपी नियमों के प्रावधानों के अनुसार रिक्त पदों को भरने का पूरा प्रयास कर रही है।
सरकाघाट के विधायक दलीप ठाकुर से सवाल के जवाब में डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने जानकारी दी है कि एचआरटीसी सरकाघाट डिपो में कुल 75 बसें हैं। इसमें 11 बसें लंबे रूटों और 109 बसें लोकल रूट पर चलती हैं। भद्रोता से एम्स बिलासपुर और पीजीआई चंडीगढ़ के लिए बस सेवाओं का संचालन संसाधनों की उपलब्धता होने पर संभव है।
सुजानपुर के विधायक राजेंद्र राणा के सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने जानकारी दी है कि एक जनवरी 2023 से 31 अगस्त 2023 तक साइबर क्राइम के 49 मामले दर्ज हुए हैं। सरकार ने रेंज स्तर पर तीन साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन मंडी, धर्मशाला और शिमला में खोले हैं। स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम तथा सोशल मीडिया पेज पर एडवाइजरी जारी करके, नए स्कैम और फ्रॉड के बारे में जागरूक किया जाता है। इसके अतिरिक्त साइबर हेल्पलाइन नंबर 1930 भी खोला गया है।
वहीं, ऊना के विधायक सतपाल सिंह सत्ती के सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने जानकारी दी है कि 1 जनवरी 2023 से 31 अगस्त 2023 तक 4 नए शराब के ठेके खोले गए और 176 उप ठेके खोले गए हैं। यह ठेके सरकारी राजस्व के हित और संबंधित क्षेत्र में शराब की अवैध बिक्री को रोकने के लिए खोले गए हैं। इस वित्तीय वर्ष शराब के ठेकों की नीलामी हो चुकी है।
अब इस वित्त वर्ष 2023-24 में नए ठेके खोलने का कोई विचार नहीं है। इसके अतिरिक्त आबकारी नीति वर्ष 2023-24 की शर्त 2.51 के अनुसार उप ठेके को खोलने का प्रावधान है। लाइसेंसी इसके लिए आवेदन कर सकता है और यदि आवेदन नियमानुसार हो तो विभाग उप ठेके को खोलने की अनुमति प्रदान कर सकता है।
शिमला।हिमाचल में भांग की खेती को वैध करने के लिए गठित कमेटी की रिपोर्ट शुक्रवार को हिमाचल विधानसभा के पटल पर रखी गई। कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल में नशा मुक्त भांग की खेती को लीगल करने से सरकार को अच्छी आय हो सकती है। कमेटी की रिपोर्ट में उम्मीद जताई है कि राज्य में भांग की खेती के वैधीकरण के सफल कार्यान्वयन से प्रारंभिक वर्षों में लगभग 400 से 500 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त होगा और बाद में इसमें वृद्धि होने की पूर्ण संभावना है।
इसके अलावा अतिरिक्त कार्य करने के लिए राज्य आबकारी व कराधान विभाग को मौजूदा संख्या से अधिक विशेष कर्मचारी उपलब्ध करवाने की सिफारिश कमेटी कि रिपोर्ट में की गई है। ऐसे में कहा जा सकता है कि हिमाचल में भांग की खेती लीगल करने से आमदनी भी होगी और युवाओं को रोजगार भी मिलेगा।
रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड देश का पहला राज्य है, जिसने सरकारी दिशा निर्देशों के अनुसार बड़े पैमाने पर औद्योगिक भांग की खेती को अनुमति दी है। राज्य के आबकारी अधिकारियों के साथ बैठक में समिति के सदस्यों को उनके सामने आने वाली चुनौतियों और नई परियोजना से राज्य के लिए पैदा अवसरों से परिचित करवाया गया।
उत्तराखंड ने 0.3 प्रतिशत THC से कम या इससे बराबर वाले औद्योगिक भांग की खेती की अनुमति के लिए एनडीपीएस अधिनियम 1985 की धारा 14 के तहत आदेश जारी किया है। हालांकि, उद्योग के प्रतिनिधियों और आबकारी विभाग के अधिकारियों के साथ चर्चा के दौरान यह भी पता चला कि THC सामग्री को 0.3 फीसदी तय करना भांग नीति के सफल कार्यान्वन में बड़ी बाधा साबित हुई है।
0.3 प्रतिशत THC वाले ऐसे बीज को प्राप्त करना मुश्किल था और आगे क्रांस परागण के कारण 0.3 फीसदी THC की वांछित सामग्री को बनाए रखना मुश्किल हो गया था। CAP सेलाकुई को औद्योगिक भांग की खेती के लिए नोडल एजेंसी बनाया गया है।
हिमाचल प्रदेश में कृषि विभाग के साथ मिलकर इस परियोजना को शुरू किया जा सकता है, जिसमें किसानों को उपयोग किए जाने वाले बीजों और खेती से संबंधित अन्य मुद्दों पर सहायता प्रदान की जाएगी, ताकि उच्च गुणवत्ता वाली भांग उगाई जा सके। राज्य में बागवानी और कृषि विश्वविद्यालयों को वैज्ञानिक और चिकित्सा अनुसंधान करने के लिए शामिल किया जा सकता है। उत्तराखंड के अनुभवों से सीखकर 0.3 फीसदी THC की आवश्यकता को खत्म किया जा सकता है।
मध्य प्रदेश में भांग की खेती को वैध बनाने के लिए आवश्यक नियमों के संबंध में आबकारी अधिकारियों और एनसीबी के अधिकारियों के साथ चर्चा की गई। एनसीबी के अधिकारियों ने भांग की खेती पर सख्त निगरानी की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि मादक पदार्थों के उपयोग के लिए भांग के उपयोग को रोका जा सके।
ग्वालियर स्थित उत्पादन इकाई साई फाइटोस्यूटिकल्स को भांग की दवा बनाने के लिए नए संशोधित भांग नियमों के तहत लाइसेंस दिया गया है। अब तक राज्य ने भांग की खेती की इजाजत नहीं दी है। जम्मू ने सीएसआईआर-आईआईआईएम द्वारा एक कनाडाई फर्म के साथ निजी सार्वजनिक भागीदारी में एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में जम्मू में एक फार्म में खेती की जा रही है। यह भारत की पहली कैनबिस दवा परियोजना है।
रिपोर्ट में वर्णित चुनौतियों की बात करें संबंधित विभागों/हितधारकों के अधिकारियों को अधिक जागरूकता, शिक्षा और जानकारी प्रदान करने की आवश्यकता है। जनशक्ति की कमी, अच्छी गणवत्ता वाले बीज विकसित करने के लिए विशेष प्रयोगशालाओं की स्थापना और नियंत्रण और विनियमन तंत्र भी चुनौती है।
वहीं आर्थिक पहलू की बात करें तो हिमाचल भौगोलिक और जलवायु रूप से भांग की खेती के लिए अनुकूल है। यह पौधा राज्य के लगभग सभी जिलों में जंगली रूप से उगता है, जिसे नशीली दवाओं के प्रयोजनों के लिए संभावित उपयोग के कारण प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा नष्ट किया जा रहा है। राज्य सरकार इस अप्रयुक्त क्षमता का दोहन कर सकती है और गैर मादक प्रयोजन के लिए भांग की खेती को विनियमित करके किसानों को लाभ पहुंचा सकती है।
औद्योगिक भांग की खेती में पर्यावरण पर कार्बन प्रभाव की मात्रा को कम करने की क्षमता है और इसकी खेती रसायनिक कीटनाशकों या उर्वरकों के बहुत कम या बिना उपयोग के की जा सकती है। औद्योगिक भांग एक विविध पौधा है, जिससे बड़ी संख्या में लगाया जा सकता है। इसके डंठल, बीज और पत्तियों का उपयोग विभिन्न निर्माण सामग्री, कपड़ा, कागज, भोजन, फर्नीचर, सौंदर्य प्रसाधन, स्वास्थ्य देखभाल उत्पाद, जैव इंधन आदि में परिवर्तित किया जाता है।
भांग से संबंधित उत्पादों के उत्पादन में शामिल उद्योग को आकर्षित करने से राज्य के राजस्व संसाधन में बढ़ोतरी होगी। उत्तराखंड राज्य ने पहले ही औद्योगिक भांग की खेती करने की अनुमति दे दी है। पौधे में पाए जाने वाले CBD Compound कैंसर, मिर्गी और पुराने दर्द आदि जैसी बीमारियों में प्रभावी है।
कानून पहलू की बात करें तो भांग की खेती की अनुमति देने की शक्तियां नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोटोपिक सब्सटेंस अधिनियम 1985 की धारा 10 और 14 द्वारा प्रदेश को प्रदान की गई हैं। एनडीपीएस अधिनियम 1985 की धारा 10 के तहत राज्य सरकार को प्रदत शक्तियों के आधार पर किसी भी भांग के पौधे की खेती, उत्पादन, निर्माण, कब्जा, परिवहन, अंतर राज्य आयात व निर्यात, बिक्री, खरीद खपत या भांग (चरस को छोड़कर) का उपयोग नियंत्रित वातावरण में औषधीय और वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए अनुमति, नियंत्रण और विनियमन के लिए एचपी एनडीपीएस नियम, 1989 में संशोधन किया जाएगा।
एनडीपीएस अधिनियम 1985 की धारा 14 के तहत फाइबर या बीज प्राप्त करने या बागवानी और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किसी भी भांग के पौधे की खेती की अनुमति देने के लिए कुछ शर्तों के अधीन एक सामान्य या विशेष आदेश पारित किया जाना चाहिए।
कमेटी की सिफारिशें
एनडीपीएस अधिनियम 1985 की धारा 10 के तहत राज्य सरकार को प्रदत्त शक्तियों के आधार पर नियंत्रित वातावरण में औषधीय औऱ वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए किसी भी भांग के पौधे की खेती, उत्पादन, निर्माण, कब्जा. परिवहन, आयात अंतर राज्य, निर्यात अंतर राज्य, बिक्री, खरीद खपत या भांग (चरस को छोड़कर) की खेती की अनुमति, नियंत्रण और विनियमन के लिए हिमाचल प्रदेश एनडीपीएस नियम 1989 में संशोधन किया जाएगा। एनडीपीएस अधियनियम 1985 की धारा 14 के तहत केवल फाइबर या बीज प्राप्त करने या बागवानी और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किसी भी भांग के पौधे की अनुमति देने के लिए कुछ शर्तों के अधीन सामान्य या विशेष आदेश पारित किया जाना चाहिए।
खेती को लेकर उत्पादों के निर्माण की प्रक्रियाओं के लिए मानक संचालन प्रक्रियाएं विकसित की जाएगी। एक राज्य स्तरीय प्राधिकरण का गठन किया जाएगा जो गैर मादक उद्देश्यों के लिए भांग की खेती को विनियमित करने में शामिल प्रक्रियाओं (बीज बैंक की स्थापना, बीज वितरण, उपज की खरीद और औद्योगिक और फार्मा इकाइयां की स्थापना) के संबंध में निर्णय लेने के लिए एकल खिड़की प्रणाली प्रदान करेगा।
कृषि/बागवानी विभाग द्वारा अनुसंधान एवं विकास विशेषज्ञ व विश्वविद्यालयों के समन्वय से बीज बैंक विकसित किए जा सकते हैं। सीएसके कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर और डॉ वाईएस परमार विश्वविद्यालय नौणी की सेवाओं का उपयोग कर अनुसंधान एवं विकास तकनीक विकसित की जा सकती है। भूमि की जियो टैगिंग राजस्व, आईटी और पर्यावरण विज्ञान प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा की जाएगी।
आय का कुछ प्रतिशत अनुसंधान और विकास जागरूकता अभियान और क्षमता निर्माण अभ्यास के लिए अलग रखा जाना चाहिए। अतिरिक्त कार्य करने के लिए राज्य आबकारी व कराधान विभाग को मौजूदा संख्या से अधिक विशेष कर्मचारी उपलब्ध करवाए जाएं।
शिमला।हिमाचल प्रदेश में भांग की खेती को वैध करने की संभावनाएं तलाशने के लिए गठित कमेटी की रिपोर्ट कैबिनेट मंत्री जगत नेगी ने विधानसभा सदन पटल पर रखी। बजट सत्र में भांग की खेती को लीगल करने का मुद्दा सदन में उठा था, जिसके बाद सरकार ने पक्ष और विपक्ष के विधायकों की राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में पांच सदस्य कमेटी बनाने का सदन में ऐलान किया था।
सुंदर ठाकुर, हंस राज, जनक राज, सुरेंद्र शौरी व पूर्ण चंद कमेटी के सदस्य हैं। कमेटी ने राज्य के सभी जिलों का दौरा कर पंचायत स्तर से जनप्रतिनिधियों के सुझाव लिए और तीन राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर का दौरा कर भांग की खेती को औषधीय और औद्योगिक रूप में अपनाने की बारीकियां की जानकारी ली गई है। अब सदन में रिपोर्ट लाकर हिमाचल सरकार ने भांग की खेती को लीगल करने की पूरी तैयारी कर ली है।
जगत सिंह नेगी ने कहा कि पड़ोसी राज्य उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों में नशा मुक्त भांग की खेती लीगल है। NDPS एक्ट में भी भांग की खेती पर राज्यों को लीगल करने का अधिकार दिया गया है। भांग की खेती से प्रदेश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने में मदद मिल सकती है, लेकिन इससे नशे को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति न हो।
जगत सिंह नेगी ने कहा कि नशा मुक्त भांग की खेती को हिमाचल प्रदेश में लीगल करने से सरकार की आय में भी वृद्धि होगी और कानून में भी इसका प्रावधान है। सरकार जल्द हिमाचल में भांग की खेती को लीगल कर सकती हैं। भांग की खेती में नशे की मात्रा 0.3 ही होगी। सरकार पूरा चेक रखेगी की भांग की खेती का नशे में प्रयोग न हो।
दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने हिमाचल में भांग की खेती लीगल करने पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि एक तरफ पुलिस भांग की खेती को उखाड़ रही है तो दूसरी तरफ भांग की खेती को लीगल कर रही है। सरकार नशा मुक्त भांग की खेती करने की बात कह रही है, लेकिन ये कैसे हो पाएगा, इस पर सवाल है। दूसरे राज्यों में क्या परिणाम रहे हैं, उस पर जानकारी के अलावा जन भावना का भी ध्यान रखना होगा।
राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में बनाई थी कमेटी
शिमला। हिमाचल में भांग की खेती को वैध बनाने की संभावनाओं की तलाश के लिए राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया था। कमेटी ने विभिन्नि प्रदेशों के भ्रमण के साथ विभिन्न पहलुओं पर विचार विमर्श कर रिपोर्ट तैयार की है।
हिमाचल प्रदेश में भांग के औषधीय और औद्योगिक उपयोग के लिए गठित समिति की इस रिपोर्ट को आज हिमाचल विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान सदन में रखा गया। राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने रिपोर्ट सदन में रखी।
रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड देश का पहला राज्य है, जिसने सरकारी दिशा निर्देशों के अनुसार बड़े पैमाने पर औद्योगिक भांग की खेती को अनुमति दी है। राज्य के आबकारी अधिकारियों के साथ बैठक में समिति के सदस्यों को उनके सामने आने वाली चुनौतियों और नई परियोजना से राज्य के लिए पैदा अवसरों से परिचित करवाया गया।
उत्तराखंड ने 0.3 प्रतिशत THC से कम या इससे बराबर वाले औद्योगिक भांग की खेती की अनुमति के लिए एनडीपीएस अधिनियम 1985 की धारा 14 के तहत आदेश जारी किया है।
हालांकि, उद्योग के प्रतिनिधियों और आबकारी विभाग के अधिकारियों के साथ चर्चा के दौरान यह भी पता चला कि THC सामग्री को 0.3 फीसदी तय करना भांग नीति के सफल कार्यान्वन में बड़ी बाधा साबित हुई है।
0.3 प्रतिशत THC वाले ऐसे बीज को प्राप्त करना मुश्किल था और आगे क्रांस परागण के कारण 0.3 फीसदी THC की वांछित सामग्री को बनाए रखना मुश्किल हो गया था। CAP सेलाकुई को औद्योगिक भांग की खेती के लिए नोडल एजेंसी बनाया गया है।
हिमाचल प्रदेश में कृषि विभाग के साथ मिलकर इस परियोजना को शुरू किया जा सकता है, जिसमें किसानों को उपयोग किए जाने वाले बीजों और खेती से संबंधित अन्य मुद्दों पर सहायता प्रदान की जाएगी ताकि उच्च गुणवत्ता वाली भांग उगाई जा सके।
राज्य में बागवानी और कृषि विश्वविद्यालयों को वैज्ञानिक और चिकित्सा अनुसंधान करने के लिए शामिल किया जा सकता है। उत्तराखंड के अनुभवों से सीखकर 0.3 फीसदी THC की आवश्यकता को खत्म किया जा सकता है।
मध्य प्रदेश में भांग की खेती को वैध बनाने के लिए आवश्यक नियमों के संबंध में आबकारी अधिकारियों और एनसीबी के अधिकारियों के साथ चर्चा की गई। एनसीबी के अधिकारियों ने भांग की खेती पर सख्त निगरानी की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि मादक पदार्थों के उपयोग के लिए भांग के उपयोग को रोका जा सके।
ग्वालियर स्थित उत्पादन इकाई साई फाइटोस्यूटिकल्स को भांग की दवा बनाने के लिए नए संशोधित भांग नियमों के तहत लाइसेंस दिया गया है। अब तक राज्य ने भांग की खेती की इजाजत नहीं दी है। जम्मू ने सीएसआईआर-आईआईआईएम द्वारा एक कनाडाई फर्म के साथ निजी सार्वजनिक भागीदारी में एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में जम्मू में एक फार्म में खेती की जा रही है। यह भारत की पहली कैनबिस दवा परियोजना है।
रिपोर्ट में वर्णित चुनौतियों की बात करें संबंधित विभागों/हितधारकों के अधिकारियों को अधिक जागरूकता, शिक्षा और जानकारी प्रदान करने की आवश्यकता है। जनशक्ति की कमी, अच्छी गणवत्ता वाले बीज विकसित करने के लिए विशेष प्रयोगशालाओं की स्थापना और नियंत्रण और विनियमन तंत्र भी चुनौती है।
वहीं आर्थिक पहलू की बात करें तो हिमाचल में भौगोलिक और जलवायु रूप से भांग की खेती के लिए अनुकूल है। यह पौधा राज्य के लगभग सभी जिलों में जंगली रूप से उगता है, जिसे नशीली दवाओं के प्रयोजनों के लिए संभावित उपयोग के कारण प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा नष्ट किया जा रहा है। राज्य सरकार इस अप्रयुक्त क्षमता का दोहन कर सकती है और गैर मादक प्रयोजन के लिए भांग की खेती को विनियमित करके किसानों को लाभ पहुंचा सकती है।
औद्योगिक भांग की खेती में पर्यावरण पर कार्बन प्रभाव की मात्रा को कम करने की क्षमता है और इसकी खेती रसायनिक कीटनाशकों या उर्वरकों के बहुत कम या बिना उपयोग के की जा सकती है। औद्योगिक भांग एक विविध पौधा है, जिससे बड़ी संख्या में लगाया जा सकता है। इसके डंठल, बीज और पत्तियों का उपयोग विभिन्न निर्माण सामग्री, कपड़ा, कागज, भोजन, फर्नीचर, सौंदर्य प्रसाधन, स्वास्थ्य देखभाल उत्पाद, जैव इंधन आदि में परिवर्तित किया जाता है।
भांग से संबंधित उत्पादों के उत्पादन में शामिल उद्योग को आकर्षित करने से राज्य के राजस्व संसाधन में बढ़ोतरी होगी। उत्तराखंड राज्य ने पहले ही औद्योगिक भांग की खेती करने की अनुमति दे दी है। पौधे में पाए जाने वाले CBD Compound कैंसर, मिर्गी और पुराने दर्द आदि जैसी बीमारियों में प्रभावी है।
कमेटी की रिपोर्ट में उम्मीद जताई है कि राज्य में भांग की खेती के वैधीकरण के सफल कार्यान्वन से लगभग प्रारंभिक वर्षों में लगभग 400 से 500 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त होगा और बाद में इसमें वृद्धि होने की पूर्ण संभावना है।
कानून पहलू की बात करें तो भांग की खेती की अनुमति देने की शक्तियां नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोटोपिक सब्सटेंस अधिनियम 1985 की धारा 10 और 14 द्वारा प्रदेश को प्रदान की गई हैं। एनडीपीएस अधिनियम 1985 की धारा 10 के तहत राज्य सरकार को प्रदत शक्तियों के आधार पर किसी भी भांग के पौधे की खेती, उत्पादन, निर्माण, कब्जा, परिवहन, अंतर राज्य आयात व निर्यात, बिक्री, खरीद खपत या भांग (चरस को छोड़कर) का उपयोग नियंत्रित वातावरण में औषधीय और वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए अनुमति, नियंत्रण और विनियमन के लिए एचपी एनडीपीएस नियम, 1989 में संशोधन किया जाएगा।
एनडीपीएस अधिनियम 1985 की धारा 14 के तहत फाइबर या बीज प्राप्त करने या बागवानी और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किसी भी भांग के पौधे की खेती की अनुमति देने के लिए कुछ शर्तों के अधीन एक सामान्य या विशेष आदेश पारित किया जाना चाहिए।
कमेटी की सिफारिशें
एनडीपीएस अधिनियम 1985 की धारा 10 के तहत राज्य सरकार को प्रदत्त शक्तियों के आधार पर नियंत्रित वातावरण में औषधीय औऱ वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए किसी भी भांग के पौधे की खेती, उत्पादन, निर्माण, कब्जा. परिवहन, आयात अंतर राज्य, निर्यात अंतर राज्य, बिक्री, खरीद खपत या भांग (चरस को छोड़कर) की खेती की अनुमति, नियंत्रण और विनियमन के लिए हिमाचल प्रदेश एनडीपीएस नियम 1989 में संशोधन किया जाएगा। एनडीपीएस अधियनियम 1985 की धारा 14 के तहत केवल फाइबर या बीज प्राप्त करने या बागवानी और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किसी भी भांग के पौधे की अनुमति देने के लिए कुछ शर्तों के अधीन सामान्य या विशेष आदेश पारित किया जाना चाहिए।
खेती को लेकर उत्पादों के निर्माण की प्रक्रियाओं के लिए मानक संचालन प्रक्रियाएं विकसित की जाएगी। एक राज्य स्तरीय प्राधिकरण का गठन किया जाएगा जो गैर मादक उद्देश्यों के लिए भांग की खेती को विनियमित करने में शामिल प्रक्रियाओं (बीज बैंक की स्थापना, बीज वितरण, उपज की खरीद और औद्योगिक और फार्मा इकाइयां की स्थापना) के संबंध में निर्णय लेने के लिए एकल खिड़की प्रणाली प्रदान करेगा।
कृषि/बागवानी विभाग द्वारा अनुसंधान एवं विकास विशेषज्ञ व विश्वविद्यालयों के समन्वय से बीज बैंक विकसित किए जा सकते हैं। सीएसके कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर और डॉ वाईएस परमार विश्वविद्यालय नौणी की सेवाओं का उपयोग कर अनुसंधान एवं विकास तकनीक विकसित की जा सकती है। भूमि की जियो टैगिंग राजस्व, आईटी और पर्यावरण विज्ञान प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा की जाएगी।
आय का कुछ प्रतिशत अनुसंधान और विकास जागरूकता अभियान और क्षमता निर्माण अभ्यास के लिए अलग रखा जाना चाहिए। अतिरिक्त कार्य करने के लिए राज्य आबकारी व कराधान विभाग को मौजूदा संख्या से अधिक विशेष कर्मचारी उपलब्ध करवाए जाएं।
सुधीर शर्मा के सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री ने दी जानकारी
शिमला। गत तीन वर्ष में 31 जनवरी 2023 तक सरकार द्वारा 1 सरकारी कार्यालय जिला कांगड़ा से बाहर स्थानांतरित किया और 36 सरकारी दफ्तर बंद किए गए हैं। यह जानकारी हिमाचल विधानसभा के मानसून सत्र में धर्मशाला के विधायक सुधीर शर्मा के सवाल से जवाब में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने दी है।
जानकारी के अनुसार 12 नवंबर 2021 को पीडब्ल्यूडी का सीएमयू उपमंडल धर्मशाला से रिवालसर मंडी स्थानांतरित किया है। एसडीपीओ शाहपुर, पुलिस पोस्ट धीरा, पुलिस पोस्ट थुरल, उपतहसील जालग, उपतहसील चचियां, पटवार वृत्त धनेटी गारलां, अनोह, सिहोटू, नंगल, पक्का टियाला, औंद, सोलधा (भटोली), जांगल (सिहूणी), थपकौर, चौगान को बंद किया है।
सिंचाई विंग धर्मशाला (गैर कार्यात्मक था), जल शक्ति वृत्त भवारना, जल शक्ति मंडल जयसिंहपुर, कांगड़ा, जल शक्ति उपमंडल बनूरी, मझीण, तंग, जल शक्ति अनुभाग डूहक, टप्पा, कंडी, तपोवन, चामुंडा नंदीकेश्वर, पीडब्ल्यूडी मंडल ज्वालामुखी कांगड़ा, विकास खंड डाडासीबा, पालमपुर, खुंडियां, जवाली, उपमंडल रक्कड़, उपमंडल कोटला बेहड़, क्षेत्रीय परियोजना निदेशक कार्यालय धर्मशाला को बंद किया गया है।
कांगड़ा जिला में कार्यालयों को बंद करने को लेकर बताया गया कि पिछली सरकार के 1 अप्रैल 2022 के बाद खोले गए कार्यालयों के संदर्भ में उस अवधि के निर्णयों की समीक्षा करने के उद्देश्य से प्रदेश सरकार के दिसंबर 2022 के आदेशों की पालना में बंद किए गए हैं।
वहीं, क्षेत्रीय परियोजना निदेशक धर्मशाला के कार्यालय को हिमाचल सरकार की 6 जनवरी 2020 की अधिसूचना के तहत बंद किया गया है। हिमाचल प्रदेश मध्य हिमालयन जलागम विकास परियोजना 31 मार्च 2017 को समाप्त हो गई। तत्पश्चात क्षेत्रीय परियोजना निदेशक धर्मशाला के कार्यालय को बंद कर दिया गया। क्योंकि एकीकृत विकास परियोजना के प्रारूपानुसार क्षेत्रीय परियोजना निदेशक कार्यालयों का प्रावधान नहीं है।
शिमला।हिमाचल विधानसभा के मानसून सत्र के पांचवें दिन की कार्यवाही शुरू होते ही आउटसोर्स कर्मियों के मुद्दे पर सदन गरमा गया। भाजपा सदन की कार्यवाही शुरू होते ही आउटसोर्स कर्मियों के मुद्दे पर नियम 67 के तहत काम रोको प्रस्ताव लाई और चर्चा की मांग की।
इस मुद्दे पर सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच नोक झोंक हुई। मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू के जवाब के बाद स्पीकर कुलदीप पठानिया ने विपक्ष के प्रस्ताव को निरस्त किया। इसके बाद विपक्ष ने सदन में नारेबाजी शुरू कर दी और सदन से वॉकआउट कर दिया।
नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि कोविड काल में नौकरी पर रखे गए कर्मचारियों को 30 सितंबर को सेवाएं खत्म करने का नोटिस दे दिया गया है। यह सरकार पांच लाख नौकरियां देने के नाम पर सत्ता में आई, लेकिन अब जो नौकरी लगे हैं, उन्हें निकाला जा रहा है। दस हजार के करीब कर्मियों को इस सरकार ने हटा दिया है।
उन्होंने कहा कि कोविड काल के मुस्किल दौर में इन लोगों ने जान जोखिम में डालकर काम किया है। मार्च के बाद इन्हें सैलरी नहीं मिली है। सीएम सदन में झूठ बोल रहे हैं। सरकार को आउटसोर्स कर्मियों के मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए और इनकी सेवाओं को आगे लगातार जारी रखना चाहिए।
उधर, मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने सदन में कहा कि छह महीने से सैलरी नहीं मिलने के विपक्ष आरोप झूठे हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में लगे कर्मचारियों को पहले तीन महीने का एक्सटेंशन दिया गया। फिर दोबारा तीन महीने की सेवा विस्तार दिया।
उन्होंने कहा कि आउटसोर्स कर्मचारी जरूरत के हिसाब से रखे जाएंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि 30 जून तक की आउटसोर्स कर्मचारियों को पूरी सैलरी मिल चुकी है। 30 सितंबर तक इनकी एक्सटेंशन की फाइल भी मूव हो गई है। इसकी सैलरी भी जल्द दे देंगे। विपक्ष झूठ बोल रहा है।
बता दें कि मानसून सत्र के पांचवें दिन हिमाचल विधानसभा में आज नेशनल हाईवे 305 औट से लुहरी की बदहाली, भांग की खेती, लो-वॉल्टेज की समस्या का मामला गूंजेगा। बाह्य सराज को कुल्लू जिला मुख्यालय से जोड़ने वाले NH-305 की बदहाली को लेकर BJP विधायक सुरेंद्र शौरी ने सदन में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाकर चर्चा की मांग की है।
वहीं, राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी भांग की खेती लीगल करने बारे विस्तृत रिपोर्ट सदन में प्रस्तुत करेंगे। इस पर चर्चा के बाद भांग की खेती को वैध करने पर विचार किया जाएगा।
शिमला। वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा संचालित राज्य विशेष अनुदानित योजना के अंतर्गत हिमाचल के राशन कार्ड धारकों को उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से दाल मलका, मूंग साबुत, दाल चना, उड़द साबुत, फोर्टिफाइड सरसों तेल, रिफाइंड ते
उपभोक्ताओं को चार दालों में से कोई भी तीन दालें खरीदने का विकल्प दिया गया है। इसके अतिरिक्त सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत उपभोक्ताओं को चावल और गंदम/गंदम आटा का वितरण भी किया जाता है। यह जानकारी ऊना के विधायक सतपाल सिंह सत्ती के सवाल के जवाब में हिमाचल विधानसभा के मानसून सत्र में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने मुहैया करवाई है।
हिमाचल में एनएफएसए उपभोक्ताओं के लिए मूंग दाल के दामों में अगस्त 2023 से एक रुपए की बढ़ोतरी, मूंग साबुत में एक रुपए की कमी, उड़द साबुत में 5 रुपए की वृद्धि और दाल चना में 16 रुपए की वृद्धि की है। दाल मलका 54, मूंग साबुत 71, उड़द साबुत 63 और चना दाल 38 रुपए में मिल रही है।
एपीएल उपभोक्ताओं को दाल मलका 64, मूंग साबुत 81, उड़द साबुत 73 और दाल चना 48 रुपए प्रति किलो मिल रही है। दाल मलका के दाम में 1 रुपए की बढ़ोतरी, मूंग साबुत में एक रुपए की कमी, उड़द साबुत में 5 और दाल चना मे 16 रुपए की बढ़ोतरी की गई है।
एपीएल इनकम टैक्स अदा करने वाले उपभोक्ताओं को दाल मलका दामों में दो रुपए बढ़ोतरी के साथ 89, मूंग साबुत दो रुपए कमी के साथ 106 , उड़द साबुत 5 रुपए की बढ़ोतरी के साथ 98 रुपए और दाल चना 1 रुपए की बढ़ोतरी के साथ 57 रुपए में मिल रही है।
मई से जुलाई तक की बात करें तो मूंग साबुत के दामों में 8 रुपए की बढ़ोतरी की थी। उड़द दाल के दाम पांच रुपए कम किए थे। दाल चना के दाम में 4 रुपए की कमी की थी। इनकम टैक्स अदा करने वाले एपीएल परिवारों के लिए मूंग साबुत में 10 रुपए की बढ़ोतरी की थी। उड़द दाल में 5 और दाल चना में 3 रुपए की कमी की थी।
जानकारी के अनुसार दालों के दामों में बढ़ोतरी और कमी के कारण की बात करें तो दालों की खरीद भारत सरकार के बफर स्टॉक से मूल्य समर्थन निधि योजना और मूल्य स्थिरीकरण के तहत की जाती है। बफर स्टॉक में दालों की गुणवत्ता ठीक न पाए जाने तथा उपलब्धता न होने की स्थिति में दालों की खरीद खुले बाजार से राज्य सरकार द्वारा नियुक्त राज्य कार्यान्वयन एजेंसी (NCCF) जोकि भारत सरकार की एक केंद्रीय नोडल एजेंसी है के माध्यम से की जाती है।
दालों के मूल्य में कमी/वृद्धि समय-समय पर संबंधित वस्तु की उपलब्धता, संबंधित वस्तु की मांग/फसल की पैदावार आदि पर निर्भर करती है, जिससे मार्केट में दालों के मूल्य में उतार चढ़ाव आ
हिमाचल में एनएफएसए उपभोक्ताओं को जून 2023 से फोर्टिफाइड सरसों तेल दाम में 32 और एपीएल को 37 रुपए कमी की गई है। उक्त उपभोक्ताओं को ये 110 रुपए में मिल रहा है। एपीएल इनकम टैक्स अदा करने वालों को 45 रुपए कमी के साथ 115 रुपए में मिल रहा है।
फोर्टिफाइड सोया रिफाइंड तेल एनएफएसए को 8 रुपए कमी के साथ 104, एपीएल को 13 रुपए कमी कर 104 और एपीएल इनकम टैक्स अदा करने वालों को 20 रुपए कमी करके 109 रुपए में मिल रहा है।
जानकारी दी है कि खाद्य तेलों की खरीद ई निविदा के माध्यम से सरकार के निर्णय अनुसार त्रैमासिक/अर्धवार्षिक आधार पर की जाती है। खाद्य तेलों की दरें खुले बाजार में दैनिक आधार पर परिवर्तित होती रहती हैं और खाद्य तेल की मार्केट अत्यधिक परिवर्तनशील है जोकि विभिन्न कारकों/बाजार में उतार चढ़ाव की स्थिति पर निर्भर करती है।
जैसे कि बाजार में कच्चे उत्पाद की उपलब्धता मांग और आपूर्ति की स्थिति, फसल आदि। पिछले तीन-चार माह में खाद्य तेलों की निविदाओं में प्राप्त एल-1 दरों के दृष्टिगत उपभोक्ताओं को खुले बाजार की तुलना में सस्ती दरों पर खाद्य तेल उपलब्ध करवाया जा रहा है।
जून से अगस्त में चीनी की बात करें तो एनएफएसए उपभोक्ताओं को 13 और ओटीएनएफएसए को 30 रुपए में मिल रही है। इसके दाम नहीं बढ़ाए हैं। एपीएल इनकम टैक्स अदा करने वालों को एक रुपए बढ़ोतरी के साथ 42 रुपए में मिल रही है।