वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं। जिस प्रकार नवरात्र में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्र के दौरान साधक मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, माँ ध्रूमावती, माँ बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं। आषाढ़ गुप्त नवरात्रि का प्रारंभ 30 जून यानी आज से हो गया है। पहले दिन कलश स्थापना के साथ 10 महाविद्याओं का पूजन प्रारंभ हो गया है।
गुप्त नवरात्र विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं।
गुप्त नवरात्र के पहले दिन मां काली की पूजा के दौरान उत्तर दिशा की ओर मुंह करके काली हकीक माला से पूजा करनी होती है। इस दिन काली माता के साथ आप भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए।
ऐसा करने से आपकी किस्मत चमक जाएगी। शनि के प्रकोप से भी छुटकारा मिल जाएगा। नवरात्रि में पहले दिन दिन मां काली को अर्पित होते हैं वहीं बीच के तीन दिन मां लक्ष्मी को अर्पित होते हैं और अंत के तीन दिन मां सरस्वती को अर्पित होते हैं।
गुप्त नवरात्र में मां काली की पूजा का महत्व
दस महाविद्याओं में मां काली प्रथम रूप है। मां काली का स्वरूप अत्यंत विकराल, अभंयकारी और मंगलकारी है. माँ काली का ये स्वरूप असुरों का नाश करने वाला है। यदि कोई व्यक्ति गुप्त नवरात्री के दौरान माँ काली की पूजा करता है तो उसके ऊपर सामने आसुरी शक्तियों का कोई असर नहीं होता।
मां काली की पूजा करने वाले व्यक्ति को रूप, यश, जय की प्राप्ति होती है। समस्त सांसारिक बाधाएं खत्म हो जाती है। मां काली ने चंड-मुंड का संहार किया था इसलिए इन्हे चामुण्डा के नाम से भी जाना जाता है। मां काली अपने गले मुंडमाला धारण करती हैं इनके एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटा हुआ सिर होता है।
मां दुर्गा ने रक्तबीज नाम के असुर का वध करने के लिए काली का अवतार धारण किया था। मां काली की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय भी दूर हो जाता है। गुप्त नवरात्र में दो तरीकों से मां काली की पूजा की जाती है। जो लोग तांत्रिक विद्या हासिल करना चाहते हैं वह लोग इस दिन मां काली की तंत्र विद्या द्वारा उपासना करते हैं।
मां काली पूजन विधि-
- गुप्त नवरात्र के पहले दिन सुबह ब्रम्ह मुहूर्त (सुबह 4 बजे) उठकर स्नान करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- अब एक साफ चौकी पर गंगाजल छिड़क कर उसे शुद्ध कर लें. अब इस चौकी पर साफ कपड़ा बिछाकर घट स्थापना करें.
- घट स्थापना करने के लिए मिट्टी, तांबे या स्टील के पात्र में जल भरकर चौकी पर रखें. अब इसके ऊपर एक नारियल को मौली और चुन्नी से लपेट कर कलश के ऊपर स्थापित करें.
- अब चौकी पर मां काली की प्रतिमा या मूर्ति की स्थापना करें. अब मां काली की तस्वीर को रोली का टीका लगाएं.
- तिलक करने के पश्चात मां काली को लाल पुष्पों की माला, पुष्प,फल, मिठाई, नैवेद्य आदि चढ़ाएं. और पुरे विधि विधान और श्रद्धा के साथ मां काली की पूजा करें.
- अब मां काली के समक्ष सरसों के तेल या घी का दीपक प्रज्वलित करें. और श्रद्धा पूर्वक मां काली के मंत्रों का जाप करें.
- देवी कवच, अर्गला स्तोत्र का पाठ करें. सबसे अंत में श्रीसूक्तम का पाठ करना चाहिए .
- जिस आसन पर आप बैठते हैं उसका रंग लाल होना चाहिए.
- अब मां काली की कथा सुने या पढ़ें. इस दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करना भी बहुत उत्तम होता है.
- माँ काली की कथा सुनने के पश्चात कपूर से आरती करें प्रसाद के रूप में मिठाई का भोग लगाएं.
- यदि आपके पास मिठाई नहीं है तो आप मां काली को बताशे का प्रसाद भी चढ़ा सकते है.
- अब सभी लोगों में प्रसाद बांट दें.और फिर स्वंय भी प्रसाद ग्रहण करें. अब मां काली से पूजा में हुई किसी भी प्रकार की गलती के लिए हाथ जोड़ कर क्षमा मांगे.
मां काली का मंत्र
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै:
मां काली की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार दारुक नाम के राक्षस ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके उनसे वरदान प्राप्त कर देवताओं और ब्राह्मणों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया और स्वर्गलोक पर कब्जा कर लिया। जिसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी ने सभी देवताओं को बताया कि इस दुष्ट का संहार एक स्त्री ही कर सकती है। जिसके बाद सभी देवता भगवान शिव के पास गए और उन्होंने भगवान शिव को सभी बात बताई।
जिसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती की और देखा। माता पार्वती इस पर मुस्कुराई और अपना एक अंश भगवान शिव में प्रवाहित कर दिया जिसके बाद भगवान शिव के कंठ से विष से उस अंश ने अपना आकार धारण किया।जिसके बाद भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। उनके इस नेत्र से विकराल रूप वाली मां काली उत्पन्न हुई।मां काली के लालट में तीसरा नेत्र और चन्द्र रेखा थी। मां काली के भयंकर व विशाल रूप को देख देवता व सिद्ध लोग भागने लगे।
जिसके बाद मां काली का दारूक और उसकी सेना के साथ भंयकर युद्ध हुआ मां काली ने सभी का वध कर दिया। लेकिन मां काली का क्रोध शांत नहीं हुआ और मां काली के इस क्रोध से संसार भी जलने लगा। जिसके बाद भगवान शिव ने एक बालक रूप धारण किया और शमशान में लेट कर रोने लगे। जिसके बाद मां काली उन्हें देखकर मोहित हो गई। इसके बाद मां काली ने बालक रूपी भगवान शिव को अपने गले से लगाकर अपना दूध पिलाया। जिसके बाद उनका क्रोध भी शांत हो गया।
मां काली की आरती
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली |
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||
तेरे भक्त जनों पे माता, भीर पड़ी है भारी |
दानव दल पर टूट पडो माँ, करके सिंह सवारी ||
सौ सौ सिंहों से तु बलशाली, दस भुजाओं वाली |
दुखिंयों के दुखडें निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||
माँ बेटे का है इस जग में, बड़ा ही निर्मल नाता |
पूत कपूत सूने हैं पर, माता ना सुनी कुमाता ||
सब पर करुणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली ||
दुखियों के दुखडे निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||
नहीं मांगते धन और दौलत, न चाँदी न सोना |
हम तो मांगे माँ तेरे मन में, इक छोटा सा कोना ||
सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली |
सतियों के सत को संवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली |
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||