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मणिमहेश यात्रा : इस बार एक साथ शुरू होगा डल तोड़ने और राधाष्टमी शाही स्नान का शुभ मुहूर्त

21 की बजाय 22 सितंबर को शुरू होगा राधाष्टमी शाही स्नान

चंबा। पवित्र मणिमहेश यात्रा का राधाष्टमी शाही स्नान 21 की बजाय 22 सितंबर को शुरू होगा। शाही स्नान दोपहर 1:36 बजे शुरू होगा और अगले दिन यानी 23 सितंबर 12:18 बजे तक चलेगा। इसे लेकर संचुई में मणिमहेश चेला कमेटी की बैठक हुई जिसमें पवित्र शाही स्नान से लेकर मणिमहेश प्रस्थान की रूपरेखा तैयार की गई।

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इस बैठक की अध्यक्षता कमेटी के अध्यक्ष धर्म सिंह ने की। इसमें निर्णय लिया कि संचूई गांव से त्रिलोचन महादेव की छड़ी 19 सितंबर को त्रिलोचन महादेव मंदिर संचुई से चौरासी के लिए रवाना होगी। यह छड़ी दो दिन तक चौरासी परिसर पर ठहरेगी। वहां मणिमहेश जाने वाले श्रद्धालुओं को आशीर्वाद दिया जाएगा।

छड़ी 21 सितंबर को त्रिलोचन महादेव मंदिर संचुई गांव से सुबह 9:00 बजे मणिमहेश के लिए प्रस्थान करेगी। इसमे पहले चौरासी मंदिर और पालधा गांव में कार्तिक स्वामी मंदिर की परिक्रमा के बाद रात को हड़सर शिव मंदिर पर रुकेगी।

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22 सितंबर को तड़के 2:00 बजे प्रस्थान करने के बाद उसी दिन 6:00 बजे धन्छौ में कार्तिक स्वामी की जातर निकाली जाएगी। आधे घंटे के बाद धन्छौ से भैरोघाटी के लिए प्रस्थान करेगी।

करीब 9:30 बजे भैरोघाटी में प्रसाद ग्रहण किया जाएगा। इसके बाद गौरी कुंड मंदिर और शिवकरोतरी की परिक्रमा के बाद छड़ी 12:00 बजे के करीब डल झील पहुंचेगी। उसी दिन 1:00 बजे डल झील को पार करने की रस्म अदा की जाएगी। शिव चेले डल झील पर राधाष्टमी तक आने वाले शिव भक्तों को आशीर्वाद देंगे।

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इस बार मणिमहेश यात्रा में डल तोड़ने के साथ राधाष्टमी शाही स्नान का शुभ मुहूर्त एक साथ शुरू होगा। हर बार डल तोड़ने के अगले दिन तड़के स्नान का शुभ मुहूर्त शुरू होता है।

इस बार लंबे समय के बाद शाही स्नान और डल तोड़ने का संयोग एक साथ बना है। ऐसे में शिव भक्त शिव के वंशज चेलों के साथ डल झील तोड़ने के साथ शाही स्नान भी कर पाएंगे।

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22 सितंबर को दोपहर 1:36 बजे राधाष्टमी का शाही स्नान शुरू होगा। इस शुभ मुहूर्त में शिव के चेले डल झील को भी तोड़ेंगे। मणिमहेश यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालु शिव के चेलों को डल झील तोड़ते वक्त देखने के लिए उनके साथ यात्रा पर जाते थे। कई बार श्रद्धालु डल तोड़ने के बाद शाही स्नान शुभ मुहूर्त में नहीं कर पाते थे क्योंकि डल तोड़ने के अगले दिन शुभ मुहूर्त होता था।

शिव चेलों को शिव भक्त अपने कंधों पर उठाकर डल तोड़ने की रस्म निभाते हैं। जिस डल झील के बीच में जाने से श्रद्धालु कतराते हैं। उसको शिव के चेले चंद मिनटों में चलकर पार करते हैं।

उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे भोलेनाथ इन चेलों को अपने हाथ पर उठाकर डल झील पार करवा रहे हों। इस नजारे को देखने के लिए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

 

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शुरू हुआ होलाष्टक : 9 दिन नहीं होंगे कोई शुभ कार्य, उग्र होंगे ये 8 ग्रह

होलिका दहन पर होता है होलाष्टक का समापन

27 फरवरी से होलाष्टक शुरू हो गया है। हिंदू धर्म के अनुसार होलाष्टक में भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए कई प्रकार की यातनाएं दी गई थीं इस वजह से होलाष्टक को अशुभ माना जाता है। होलाष्टक में ग्रह भी उग्र होते हैं, इस वजह से कोई शुभ कार्य करने या बड़े निर्णय लेने से बचा जाता है।

हिन्दू कैलेंडर की 8 तिथियों में होलाष्टक होता है। इस साल होलाष्टक 8 नहीं बल्कि 9 दिनों का है। होलाष्टक का प्रारंभ फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को होता है और यह फाल्गुन पूर्णिमा यानी होलिका दहन तक रहता है। होलिका दहन 7 मार्च को है। ऐसे में इस साल होलाष्टक 27 फरवरी से 7 मार्च तक है।

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पंचांग के अनुसार, आज 27 फरवरी को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि की शुरूआत 12:58 एएम से हुई है और इसका समापन 28 फरवरी को 02:21 एएम पर होगा। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि आज से प्रारंभ हो रहा है, इसलिए आज प्रात:काल से होलाष्टक लग गया है।

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इस साल 06 मार्च को शाम 04:17 बजे से फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि शुरू होगी और 07 मार्च को शाम 06:09 बजे इसका समापन होगा. ऐसे में होलिका दहन 7 मार्च को है तो होलाष्टक का समापन भी उस दिन होगा.

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होलाष्टक के कारण बंद हुए शुभ कार्य होली के दिन से यानि चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ हो जाएंगे। यदि आप को कोई नया या शुभ कार्य करना चाहते हैं तो उसे 8 मार्च से कर सकते हैं। 27 फरवरी से 7 मार्च के बीच उसे करने से बचें।

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होलाष्टक की 8 तिथियों में 8 प्रमुख ग्रह उग्र रहेंगे। ऐसे में व्यक्ति का मन अशांत हो सकता है, इस वजह से होलाष्टक के समय में बड़े फैसलों को करने से बचने की सलाह दी जाती है। होलाष्टक में क्रमश: चंद्रमा, सूर्य, शनि, शुक्र, गुरु, बुध, मंगल और राहु ग्रह अष्टमी से पूर्णिमा के बीच उग्र रहते हैं। होलाष्टक में आप चाहें तो नवग्रह शांति के उपाय कर सकते हैं।

होलाष्टक के दौरान क्या करें – क्या न करें

होलाष्टक में भगवान की भक्ति और पूजा पाठ में समय व्यतीत करें।

होलाष्टक में आमलकी एकादशी, रंगभरी एकादशी, शनि प्रदोष जैसे व्रत आने वाले हैं। फाल्गुन पूर्णिमा पर स्नान दान करें और माता लक्ष्मी की पूजा करके धन-समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।

होलाष्टक के इन 9 दिनों में विवाह, मुंडन, सगाई, गृह प्रवेश या कोई नया कार्य न करें।

होलाष्टक के दौरान किसी नए वाहन की खरीदारी भी करना अशुभ माना जाता है।

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