शिमला। हिमाचल के पूर्व डिप्टी एडवोकेट जनरल और हाईकोर्ट के अधिवक्ता विनय शर्मा ने कांगड़ा-चंबा लोकसभा सीट पर कांग्रेस की टिकट पर दावेदारी जताई है। उन्होंने कांग्रेस टिकट के लिए आवेदन किया है।
बता दें कि विनय शर्मा पुत्र स्वर्गीय जगदीश चंद्र शर्मा कांगड़ा शहर के साथ लगते घुरक्कड़ी गर्ग कॉलोनी के निवासी हैं।
वह एमए एलएलबी हैं। विनय शर्मा को पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के करीबी लोगों में माना जाता था। पूर्व की कांग्रेस सरकार में वह डिप्टी एडवोकेट जनरल रह चुके हैं। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह पर ‘राजा तां फकीर है’ किताब भी लिखी है।
एडवोकेट विनय शर्मा ने कहा कि उन्होंने कांगड़ा-चंबा लोकसभा सीट के लिए कांग्रेस टिकट के लिए आवेदन किया है। अगर पार्टी मौका देती है तो सीट जीतकर कांग्रेस की झोली में डाली जाएगी।
शिमला। हिमाचल में कोई भी मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) मंत्रियों जैसी सुविधाएं नहीं ले पाएगा। हाईकोर्ट ने यह अंतरिम आदेश बुधवार को केस की सुनवाई के दौरान दिए। मामले को लेकर अगली सुनवाई 12 मार्च को तय की गई है।
बता दें कि हाईकोर्ट में पिछले कल और आज दो दिन सीपीएस (CPS) की नियुक्ति को असंवैधानिक बताने वाली याचिका पर सुनवाई हुई। ऊना के विधायक सतपाल सिंह सत्ती सहित 11 भाजपा विधायकों ने याचिका हाईकोर्ट में दायर की है।
भाजपा विधायकों की ओर से हाईकोर्ट में केस की पैरवी कर रहे एडवोकेट सत्यपाल जैन ने कहा कि अब कोई भी सीपीएस (CPS) मंत्रियों के समान काम नहीं कर पाएगा। कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है। मामले में अगली सुनवाई 12 मार्च को होगी।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 में किए गए संशोधन के मुताबिक किसी भी प्रदेश में मंत्रियों की संख्या विधायकों की कुल संख्या के 15 फीसदी से अधिक नहीं हो सकती है।
इस हिसाब से हिमाचल में में अधिकतम 12 मंत्री बनाए जा सकते हैं। याचिकाकर्ताओं के अनुसार प्रदेश में मंत्री और सीपीएस की संख्या में 15 फीसदी से ज्यादा हो गई है। इसलिए सीपीएस की नियुक्तियों को भाजपा विधायकों ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है।
बता दें कि हिमाचल में 6 सीपीएस बनाए गए हैं। इसमें बैजनाथ के विधायक किशोरी लाल, पालमपुर के विधायक आशीष बुटेल, कुल्लू के विधायक सुंदर सिंह ठाकुर, अर्की के विधायक संजय अवस्थी, दून के विधायक राम कुमार चौधरी और रोहड़ू के विधायक मोहन लाल ब्राक्टा को सीपीएस बनाया गया है। साथ ही अभी मुख्यमंत्री सहित 11 मंत्री हैं। एक मंत्री का पद अभी खाली है।
शिमला। सिरमौर जिला के गिरीपार के हाटी समुदाय को एसटी का दर्जा देने के खिलाफ गुर्जर समुदाय हाईकोर्ट पहुंच गया है। गुर्जर समाज ने केंद्र सरकार द्वारा हाटी समुदाय को ST का दर्जा देने के फैसले पर विरोध जताया और हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।
हाईकोर्ट में गुरुवार 30 नवंबर को इस मामले में सुनवाई हुई और इस मामले में केंद्र सरकार सहित अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया गया है। इस मामले में 18 दिसंबर को हाईकोर्ट में सुनवाई होगी।
गुर्जर समाज की ओर से केस लड़ रहे सीनियर एडवोकेट रजनीश मनिकटाला ने कहा कि गिरिपार के गुजर समाज के लोगों ने हाटी समुदाय को ST का दर्जा देने का विरोध करते हुए कोर्ट में इस मामले में याचिका दायर की है।
इनकी दलील है कि हाटी समुदाय एसटी का दर्जा देने के मापदंड पर खरा नहीं उतरता है। ST का दर्जा देने के लिए शैक्षणिक, आर्थिक पिछड़ापन, एथनिक ग्रुप सहित कई मापदंड हैं, जिसको हाटी समुदाय पूरा नहीं कर रहा।
अधिवक्ता रजनीश मनिकटाला ने कहा कि गुर्जर समुदाय की दलील है कि हाटी समुदाय को ST का दर्जा दिया गया है चाहे वह छोटी जाती का हो या बड़ी जाती का लेकिन कुछ ऐसे वर्ग हैं, वे साधन संपन्न हैं।
यह वर्ग ST के मापदंड पूरा नहीं कर रहा है। गुर्जर समुदाय का कहना है कि हाटी को जनजातीय दर्जा देना एक राजनीतिक फैसला है।
इसमें साधन संपन्न लोग शामिल हैं। गुर्जर समुदाय की यह भी दलील है कि एसटी का दर्जा देने के बाद उनको इन संपन्न लोगों के साथ आरक्षण के लिए प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी और इसमें वे पिछड़ जाएंगे।
अधिवक्ता रजनीश मनिकटाला ने कहा कि मामले की मुख्य न्यायधीश सहित ज्योत्स्ना रिवाल दुआ की अदालत में सुनवाई हुई।
हाईकोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार व हिमाचल सरकार सहित संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर रिप्लाई फाइल करने के आदेश दिए हैं। इस मामले में सुनवाई अब 18 दिसंबर को होगी।
शिमला। हिमाचल में वन मित्र भर्ती प्रक्रिया शुरू होने से पहले एससी (SC) व एसटी (ST) आदि के लिए आरक्षण लागू करने की मांग उठ गई है। सीटू ने इसको लेकर रविवार को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को मांग पत्र सौंप कर मांग उठाई है।
शिमला में मीडिया से बातचीत में सीटू के राज्य महासचिव जगत राम ने कहा कि जो आरक्षण बाबा साहिब अंबेडकर द्वारा एससी और पिछड़े समाज के लिए जो आरक्षण दिया था वो आज पूरी तरह से लागू नहीं किया जा रहा है। हिमाचल में आरक्षण सही प्रकार से लागू नहीं हो रहा है।
हिमाचल में वेटरनरी सहित अन्य कई विभागों में भर्तियां हुई हैं, जिनमें आरक्षण लागू नहीं किया गया है। इन भर्तियों में मात्र दो नंबर एससी/एसटी के लिए रखे गए हैं। हालांकि, केंद्र सरकार ने एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दिया है कि 40 दिन के ऊपर की सभी भर्तियों में आरक्षण को लागू किया जाएगा। फिर भी आरक्षण को पूरी तरह से लागू नहीं किया जा रहा है। इससे एससी समाज में रोष है।
अब हिमाचल में 2061 वन मित्र की भर्ती होने जा रही है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को ज्ञापन सौंपकर निवेदन किया है कि इनमें आरक्षण को लागू किया जाए। पर मुख्यमंत्री ने कहा कि यह पक्की भर्ती नहीं है।
अगर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दिया है कि 40 दिन से ऊपर की भर्तियों में आरक्षण लागू हो तो इसमें क्या पक्की और नियमित भर्ती की बात है। इसलिए सरकार वन मित्र भर्ती में आरक्षण को लागू करे। अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो स्टे के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा।
बता दें कि हिमाचल में हर बीट में एक वन मित्र की भर्ती होनी है। 30 नवंबर से आवेदन प्रक्रिया शुरू होगी। आवेदन की अंतिम तिथि 31 दिसंबर है। वन मित्र के लिए इंटरव्यू के आधार पर चन होगा।
शिमला। कांगड़ा जिला के पालमपुर के कारोबारी निशांत शर्मा मामले को लेकर बुधवार को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में सुनवाई हुई, जिसमें मुख्यत चार बिंदुओं पर बहस हुई।
सरकार की तरफ से एडवोकेट जनरल ने मामले को लेकर स्टेटस रिपोर्ट हाईकोर्ट में दाखिल की, जिसके बाद हाईकोर्ट ने मामले को लेकर की जा रही जांच का रिकॉर्ड जमा करने के निर्देश सरकार को दिए हैं और 4 दिसंबर को मामले को लेकर अगली सुनवाई की तारीख तय की है।
मामले को लेकर जानकारी देते हुए एडवोकेट जनरल अनूप रत्न ने बताया कि कोर्ट के निर्देश पर कारोबारी की शिकायत पर कांगड़ा में एफआईआर दर्ज की गई है और डीएसपी रैंक का अधिकारी इस मामले की जांच कर रहा है, लेकिन अब सरकार ने एएसपी रैंक के अधिकारी से मामले की जांच करवाने का कोर्ट में आश्वासन दिया है।
साथ ही कोर्ट ने जो जांच के रिकॉर्ड मांगें हैं उसकी प्रतिलिपि भी सरकार एक से दो दिन में कोर्ट में जमा करवाएगी और कारोबारी की सुरक्षा को लेकर भी सरकार ने कोर्ट में आश्वासन दिया है कि कारोबारी को दो कांस्टेबल सुरक्षा के लिए मुहैया करवाए गए हैं और अगर और भी जरूरत होगी तो सुरक्षा दी जाएगी। अब 4 दिसंबर को मामले को लेकर दोनों पक्षों को सुना जाएगा।
शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में विचाराधीन होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल को लेकर प्रदेश सरकार बनाम ओबरॉय ग्रुप मामले में अगली सुनवाई अब 24 नवंबर को होगी। इससे पहले बीते शनिवार को कोर्ट के ऑर्डर के बाद प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल को अपने कब्जे में लेने का प्रयास किया, लेकिन तब सरकार के एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर रोक लगा दी और सुनवाई के लिए 21 नवंबर की तारीख दी थी।
ओबरॉय ग्रुप के वकील राकेश्वर लाल सूद ने बताया कि हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में मामले पर आज सुनवाई हुई, जिसमें सरकार की ओर से दिल्ली से वकील ने वर्चुअली अदालत में सरकार का पक्ष रखा और अदालत से समय मांगा। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सुनवाई के लिए 24 नवंबर की तारीख दी है, जिसमें सरकार की तरफ से वकील अपना पक्ष रखेंगे।
कारोबारी निशांत की मेल पर हाईकोर्ट ने लिया है स्वत: संज्ञान
शिमला। पालमपुर के कारोबारी निशांत शर्मा मामले पर हिमाचल हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था। मामले को लेकर गुरुवार को सुनवाई हुई। मामले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कांगड़ा एसपी को मामला दर्ज करने के आदेश दिए हैं साथ ही अगली सुनवाई 22 नवंबर को रखी गई है।
हिमाचल हाईकोर्ट में महाधिवक्ता अनूप रतन ने बताया कि कोर्ट ने कहा कि जब कोई व्यक्ति शिकायत करता है तो FIR करना जरूरी होता है। कारोबारी की शिकायत पर दर्ज की जाएगी साथ ही सुरक्षा मुहैया करवाने के भी आदेश दिए हैं। आज एसपी कांगड़ा और एसपी शिमला ने स्टेटस रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष रखी। उन्होंने बताया कि कोर्ट ने शिकायतकर्ता के पक्ष में एक वरिष्ठ वकील की भी नियुक्ति की है। अब इस मामले में FIR दर्ज करवाने का पूर्ण आश्वासन दिया गया है।
हिमाचल प्रदेश में इस हाई प्रोफाइल मामले में डीजीपी संजय कुंडू भी सवालों के घेरे में हैं। पालमपुर के कारोबारी निशांत शर्मा ने डीजीपी संजय कुंडू के खिलाफ भी ई मेल से शिकायत दी है। इसी ईमेल पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने जवाब तलब किया था।
कारोबारी निशांत शर्मा के मुताबिक उन पर गुरुग्राम में हमला हुआ। जिसकी एफआईआर भी गुरुग्राम में दर्ज करवाई गई है। इसके बाद मैक्लोडगंज में उनको मामला वापिस लेने के लिए दो लोगों द्वारा धमकाया गया। कारोबारी निशांत शर्मा का कहना है कि इसी बीच उन्हें डीजीपी कार्यालय से 14 बार फोन किया गया। जब उन्होंने डीजीपी से बात की तो उन्हें डीजीपी ने शिमला आने के लिए कहा।
कारोबारी निशांत शर्मा का आरोप है कि जब वह डीजीपी को जानते ही नहीं है तो उन्हें शिमला क्यों बुलाया गया। उन्होंने पालमपुर के डीएसपी और एसएचओ की भूमिका पर भी सवाल उठाया है। निशांत ने कहा कि गुरुग्राम के हमले की ही तरह धर्मशाला में उनको धमकाना, डीजीपी द्वारा फोन करके शिमला बुलाना अपने आप में सवाल खड़े करता है।
क्या है पूरा मामला
पालमपुर से संबंध रखने वाले एक कारोबारी निशांत शर्मा ने आरोप लगाया है कि डीजीपी से उसे जान का खतरा है। संपत्ति से जुड़े एक मामले में निशांत शर्मा पर हमला हो चुका है। निशांत शर्मा ने आरोप लगाया है कि उसे पुलिस मुख्यालय से बार-बार फोन किया जा रहा था और डीजीपी उसे शिमला मिलने के लिए बुला रहे थे।
निशांत शर्मा के अनुसार उसने मेल के माध्यम से डीजीपी से जानना चाहा कि उसे शिमला क्यों बुलाया जा रहा है। इस मेल के बाद डीजीपी संजय कुंडू ने निशांत शर्मा पर छोटा शिमला थाने में एफआईआर दर्ज करवा दी। डीजीपी ने एफआईआर में कहा कि निशांत शर्मा ने उनकी छवि को खराब करने की नीयत से मनगढ़ंत आरोप लगाए हैं।
इस बीच, निशांत शर्मा ने सीएम सहित हिमाचल हाई कोर्ट के सीजे को मेल लिखकर मामले में संज्ञान लेने का आग्रह किया था। हिमाचल सरकार के मुख्य सचिव भी इस मामले में जांच की बात कह चुके हैं। निशांत शर्मा का आरोप है कि कांगड़ा के भागसूनाग में उसका रास्ता रोक कर कुछ लोगों ने धमकी दी थी। कांगड़ा पुलिस ने घटनास्थल का सीसीटीवी फुटेज रिकॉर्ड में लिया है।
वहीं, निशांत शर्मा पर गुड़गांव में भी हमला हो चुका है। उस मामले की जांच हरियाणा पुलिस कर रही है। इस बीच, हाई प्रोफाइल मामले में डीजीपी संजय कुंडू को पद से हटाने की मांग भी की जा रही है। कारोबारी का कहना है कि डीजीपी के पद पर रहते हुए पुलिस की जांच निष्पक्ष नहीं रह सकती।
उधर, डीजीपी ऑफिस से एक प्रेस नोट जारी हुआ है। प्रेस नोट के अनुसार यह 2023 की आपराधिक लिखित याचिका संख्या 14 के संबंध में डीजीपी के खिलाफ प्रसारित कुछ सोशल मीडिया अफवाहों से संबंधित है।
यह स्पष्ट करना है कि डीजीपी अपनी निजी या आधिकारिक क्षमता में न तो एक पक्ष है और न ही प्रतिवादी है। उन्हें कभी भी उच्च न्यायालय द्वारा तलब नहीं किया गया और न ही उनके लिए कोई प्रतिकूल आदेश पारित किया गया। मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है।
शिमला। इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज, अस्पताल शिमला, डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज, अस्पताल टांडा और अन्य मेडिकल कॉलेजों में हिमाचल हाईकोर्ट के फैसले की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। मेडिकल कॉलेजों में दिव्यांग छात्रों से फीस वसूली जा रही है। यह आरोप दिव्यांगों के लिए कार्य कर रही संस्था उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष अजय श्रीवास्तव ने लगाया है।
अजय श्रीवास्तव ने बताया कि उन्होंने इस बारे में प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र भेज कर तुरंत संज्ञान लेने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि यदि 15 दिन के भीतर संबंधित मेडिकल कॉलेजों ने दिव्यांग बच्चों की फीस वापस नहीं की तो वह हाईकोर्ट में अदालत की अवमानना का केस दायर करेंगे।
अजय श्रीवास्तव ने कहा कि उनकी जनहित याचिका पर 4 जून 2015 को जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस तरलोक सिंह चौहान की खंडपीठ ने अपनी फैसले में स्पष्ट कहा था कि दिव्यांग विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय स्तर तक निशुल्क शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।
हाईकोर्ट ने कहा था कि विश्वविद्यालय स्तर तक दिव्यांग बच्चों से कोई भी फीस वसूल नहीं की जाएगी। अदालत के फैसले में टांडा मेडिकल कॉलेज और आईजीएमसी शिमला का तो साफतौर पर उल्लेख है।
इसके बावजूद जून 2015 के बाद 9 वर्ष में मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज सैकड़ों दिव्यांग विद्यार्थियों से गैरकानूनी ढंग से फीस वसूल चुके हैं। उन्होंने कहा कि वे समय-समय पर टांडा मेडिकल कॉलेज और आईजीएमसी शिमला के प्रबंधन के ध्यान में हाईकोर्ट का फैसला ला चुके हैं।
इसके बावजूद हाईकोर्ट के आदेशों का खुला उल्लंघन करके एमबीबीएस एवं अन्य कक्षाओं के विद्यार्थियों को फीस देने पर मजबूर किया जा रहा है।
अजय श्रीवास्तव ने कहा कि प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों समेत सभी चिकित्सा एवं तकनीकी शिक्षण संस्थानों में दिव्यांग विद्यार्थियों को हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक मुफ्त शिक्षा दी जानी चाहिए।
इसके बावजूद सरकारी मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, पॉलिटेक्निक, नर्सिंग कॉलेज, और इंडस्ट्रियल ट्रेंनिंग इंस्टीट्यूट (आईटीआई) आदि संस्थान दिव्यांग बच्चों से फीस चार्ज कर रहे हैं। यह बेहद गंभीर मामला है, जो बताता है कि नौकरशाही किस तरह दिव्यांग बच्चों एवं अन्य कमजोर वर्गों के अधिकारों का हनन कर रही है।
शिमला।हिमाचल हाईकोर्ट ने सीपीएस की नियुक्तियों के मामले में सरकार के आवेदन को खारिज कर दिया है। सुक्खू सरकार ने सीपीएस नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिकाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठाए थे। सरकार की दलील थी कि सभी याचिकाएं हाईकोर्ट के नियमों के अनुसार दायर नहीं की गई हैं।
याचिका विधायक सतपाल सत्ती और अन्य 11 विधायकों के द्वारा दायर की है। याचिका में सभी 12 याचिकाकर्ता का एफिडेविट होने चाहिए। दूसरे पक्ष ने कानून के तहत अपना पक्ष कोर्ट में रखा। कोर्ट ने फैसले में सरकार के आवेदन को खारिज कर दिया। अब सतपाल सिंह सत्ती सहित 12 विधायकों द्वारा याचिका पर 16 अक्टूबर को हाईकोर्ट में सुनवाई होगी।
बता दें कि भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं विधायक सतपाल सत्ती ने अतिरिक्त महाधिवक्ता पंजाब हरियाणा सतपाल जैन, वरिष्ठ अधिवक्ता अंकुश दास, अधिवक्ता वीर बहादुर वर्मा, अंकित धीमान, मुकुल शर्मा और राकेश शर्मा के माध्यम से हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में सीपीएस नियुक्ति को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाया गया है।
फैसले के बारे में मीडिया से बातचीत करते हुए अधिवक्ता वीर बहादुर वर्मा ने बताया कि हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में सरकार द्वारा मेंटेनेबिलिटी को लेकर किए आवेदन पर जजमेंट के लिए सुनवाई हुई। इसमें हमारे पक्ष में फैसला आया है और सरकार के आवेदन को खारिज कर दिया गया है।
जैसे कि हमें अवगत है कि सीपीएस नियुक्ति को लेकर सतपाल सत्ती एवं 11 अन्य विधायकों ने हाईकोर्ट इनकी नियुक्ति को चुनौती दी थी। पिछली बार 3 अक्टूबर को मुद्दा कोर्ट के समक्ष लगा था, जिसमें लंबी बहस हुई थी, जिसका आज फैसला आया है। इस फैसले में साफ है की याचिका मेंटेनेबल है, मतलब आगे बढ़ाने योग्य है।
उन्होंने कहा कि 16 अक्टूबर को हाईकोर्ट में फिर याचिका सुनवाई होगी। हमने कोर्ट के समक्ष प्रार्थना की है कि अंतरिम निवेदन पर सुनवाई की जाए। सवाल यह उठता है कि अंतरिम निवेदन में क्या होगा, अगर हाईकोर्ट मानता है कि सीपीएस की नियुक्ति पर रोक लगनी चाहिए, तो यह एक बड़ा फैसला माना जाएगा। हमने पहले भी स्पष्ट किया है कि यह सरकारी खजाने का मामला है और इसको लेकर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला पूर्व में भी सुनाया है। सर्वोच्च न्यायालय का कानून लागू होता है। इससे बड़ा कोई कोर्ट नहीं है।
असम और मणिपुर में भी ऐसे ही मामले को लेकर पूर्व में फैसला सुनाया जा चुका है। फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने सीपीएस को नियुक्ति को अवैध और असंवैधानिक माना है। इसको आधार बनाते हुए हमने विधायक सतपाल सत्ती और अन्य विधायकों के माध्यम से सीपीएस की नियुक्तियों को चैलेंज किया है। हमने आज पहली बाधा पार कर ली है। उन्होंने कहा कि 16 अक्टूबर को कोर्ट याचिका पर फैसला भी सुना सकता और इसे रिजर्व भी रख सकता है।
शिमला। दिवाली से पहले हिमाचल पंचायती राज विभाग में कार्यरत तकनीकी सहायकों को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने प्रदेश के सभी तकनीकी सहायकों को न्यूनतम वेतनमान देने के आदेश दिए हैं।
यही नहीं उन्हें राज्य सरकार की नीति के तहत नियमितिकरण के लिए भी हकदार ठहराया है। अदालत ने विभाग की ओर से जारी 17 दिसंबर 2021 के आदेशों को निरस्त कर दिया है।
बता दें कि विभाग ने जिला परिषदों को आदेश को तकनीकी सहायकों को सिर्फ कमीशन के आधार पर पारिश्रमिक देने के आदेश दिए थे। हिमाचल हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर कर विभाग के वेतन न देने के निर्णय को चुनौती दी गई।
याचिकाओं में बताया गया कि पहले तकनीकी सहायकों को 8910 रुपये का मासिक वेतन दिया जा रहा था, लेकिन विभाग ने उसे बिना सोचे-समझे वापस ले लिया।
हिमाचल सरकार ने 7 अप्रैल 2008 को ग्राम पंचायत स्तर पर तकनीकी सहायकों को नियुक्त करने के लिए अधिसूचना जारी की थी। नियुक्ति का मुख्य उद्देश्य मनरेगा कार्यों की गुणवत्ता और लागत प्रभावशीलता का निरीक्षण करना था। सरकार ने वेतन निर्धारण के लिए नियम भी बनाए थे।
नियमित तकनीकी सहायक को 10300-34800 और 3000 रुपये का ग्रेड पे एवं अनुबंध सहायकों को 5910 और सिर्फ 3000 रुपये के ग्रेड पे का प्रावधान किया गया था।
इसके बाद सरकार ने 23 जुलाई 2019 को तकनीकी सहायक के 1081 पद स्वीकृत करने का फैसला लिया। वर्ष 2020 में 115 खाली पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू की थी।
याचिकाकर्ताओं को अनुबंध आधार पर नियुक्त किया गया था। उनके नियुक्ति पत्र में भी उन्हें 8910 रुपये मासिक दिए जाने का निर्णय लिया गया था। विभाग ने बाद में इसे वापस लेते हुए सिर्फ कमीशन ही देने का निर्णय लिया था। फैसले में कोर्ट ने इस निर्णय को असांविधानिक करार दिया और रद्द कर दिया। साथ ही उक्त फैसला सुनाया।