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शिमला। हिमाचल में भांग की खेती को वैध बनाने की संभावनाओं की तलाश के लिए राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया था। कमेटी ने विभिन्नि प्रदेशों के भ्रमण के साथ विभिन्न पहलुओं पर विचार विमर्श कर रिपोर्ट तैयार की है।
हिमाचल प्रदेश में भांग के औषधीय और औद्योगिक उपयोग के लिए गठित समिति की इस रिपोर्ट को आज हिमाचल विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान सदन में रखा गया। राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने रिपोर्ट सदन में रखी।
रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड देश का पहला राज्य है, जिसने सरकारी दिशा निर्देशों के अनुसार बड़े पैमाने पर औद्योगिक भांग की खेती को अनुमति दी है। राज्य के आबकारी अधिकारियों के साथ बैठक में समिति के सदस्यों को उनके सामने आने वाली चुनौतियों और नई परियोजना से राज्य के लिए पैदा अवसरों से परिचित करवाया गया।
उत्तराखंड ने 0.3 प्रतिशत THC से कम या इससे बराबर वाले औद्योगिक भांग की खेती की अनुमति के लिए एनडीपीएस अधिनियम 1985 की धारा 14 के तहत आदेश जारी किया है।
हालांकि, उद्योग के प्रतिनिधियों और आबकारी विभाग के अधिकारियों के साथ चर्चा के दौरान यह भी पता चला कि THC सामग्री को 0.3 फीसदी तय करना भांग नीति के सफल कार्यान्वन में बड़ी बाधा साबित हुई है।
0.3 प्रतिशत THC वाले ऐसे बीज को प्राप्त करना मुश्किल था और आगे क्रांस परागण के कारण 0.3 फीसदी THC की वांछित सामग्री को बनाए रखना मुश्किल हो गया था। CAP सेलाकुई को औद्योगिक भांग की खेती के लिए नोडल एजेंसी बनाया गया है।
हिमाचल प्रदेश में कृषि विभाग के साथ मिलकर इस परियोजना को शुरू किया जा सकता है, जिसमें किसानों को उपयोग किए जाने वाले बीजों और खेती से संबंधित अन्य मुद्दों पर सहायता प्रदान की जाएगी ताकि उच्च गुणवत्ता वाली भांग उगाई जा सके।
राज्य में बागवानी और कृषि विश्वविद्यालयों को वैज्ञानिक और चिकित्सा अनुसंधान करने के लिए शामिल किया जा सकता है। उत्तराखंड के अनुभवों से सीखकर 0.3 फीसदी THC की आवश्यकता को खत्म किया जा सकता है।
मध्य प्रदेश में भांग की खेती को वैध बनाने के लिए आवश्यक नियमों के संबंध में आबकारी अधिकारियों और एनसीबी के अधिकारियों के साथ चर्चा की गई। एनसीबी के अधिकारियों ने भांग की खेती पर सख्त निगरानी की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि मादक पदार्थों के उपयोग के लिए भांग के उपयोग को रोका जा सके।
ग्वालियर स्थित उत्पादन इकाई साई फाइटोस्यूटिकल्स को भांग की दवा बनाने के लिए नए संशोधित भांग नियमों के तहत लाइसेंस दिया गया है। अब तक राज्य ने भांग की खेती की इजाजत नहीं दी है। जम्मू ने सीएसआईआर-आईआईआईएम द्वारा एक कनाडाई फर्म के साथ निजी सार्वजनिक भागीदारी में एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में जम्मू में एक फार्म में खेती की जा रही है। यह भारत की पहली कैनबिस दवा परियोजना है।
रिपोर्ट में वर्णित चुनौतियों की बात करें संबंधित विभागों/हितधारकों के अधिकारियों को अधिक जागरूकता, शिक्षा और जानकारी प्रदान करने की आवश्यकता है। जनशक्ति की कमी, अच्छी गणवत्ता वाले बीज विकसित करने के लिए विशेष प्रयोगशालाओं की स्थापना और नियंत्रण और विनियमन तंत्र भी चुनौती है।
वहीं आर्थिक पहलू की बात करें तो हिमाचल में भौगोलिक और जलवायु रूप से भांग की खेती के लिए अनुकूल है। यह पौधा राज्य के लगभग सभी जिलों में जंगली रूप से उगता है, जिसे नशीली दवाओं के प्रयोजनों के लिए संभावित उपयोग के कारण प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा नष्ट किया जा रहा है। राज्य सरकार इस अप्रयुक्त क्षमता का दोहन कर सकती है और गैर मादक प्रयोजन के लिए भांग की खेती को विनियमित करके किसानों को लाभ पहुंचा सकती है।
औद्योगिक भांग की खेती में पर्यावरण पर कार्बन प्रभाव की मात्रा को कम करने की क्षमता है और इसकी खेती रसायनिक कीटनाशकों या उर्वरकों के बहुत कम या बिना उपयोग के की जा सकती है। औद्योगिक भांग एक विविध पौधा है, जिससे बड़ी संख्या में लगाया जा सकता है। इसके डंठल, बीज और पत्तियों का उपयोग विभिन्न निर्माण सामग्री, कपड़ा, कागज, भोजन, फर्नीचर, सौंदर्य प्रसाधन, स्वास्थ्य देखभाल उत्पाद, जैव इंधन आदि में परिवर्तित किया जाता है।
भांग से संबंधित उत्पादों के उत्पादन में शामिल उद्योग को आकर्षित करने से राज्य के राजस्व संसाधन में बढ़ोतरी होगी। उत्तराखंड राज्य ने पहले ही औद्योगिक भांग की खेती करने की अनुमति दे दी है। पौधे में पाए जाने वाले CBD Compound कैंसर, मिर्गी और पुराने दर्द आदि जैसी बीमारियों में प्रभावी है।
कमेटी की रिपोर्ट में उम्मीद जताई है कि राज्य में भांग की खेती के वैधीकरण के सफल कार्यान्वन से लगभग प्रारंभिक वर्षों में लगभग 400 से 500 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त होगा और बाद में इसमें वृद्धि होने की पूर्ण संभावना है।
कानून पहलू की बात करें तो भांग की खेती की अनुमति देने की शक्तियां नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोटोपिक सब्सटेंस अधिनियम 1985 की धारा 10 और 14 द्वारा प्रदेश को प्रदान की गई हैं। एनडीपीएस अधिनियम 1985 की धारा 10 के तहत राज्य सरकार को प्रदत शक्तियों के आधार पर किसी भी भांग के पौधे की खेती, उत्पादन, निर्माण, कब्जा, परिवहन, अंतर राज्य आयात व निर्यात, बिक्री, खरीद खपत या भांग (चरस को छोड़कर) का उपयोग नियंत्रित वातावरण में औषधीय और वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए अनुमति, नियंत्रण और विनियमन के लिए एचपी एनडीपीएस नियम, 1989 में संशोधन किया जाएगा।
एनडीपीएस अधिनियम 1985 की धारा 14 के तहत फाइबर या बीज प्राप्त करने या बागवानी और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किसी भी भांग के पौधे की खेती की अनुमति देने के लिए कुछ शर्तों के अधीन एक सामान्य या विशेष आदेश पारित किया जाना चाहिए।
एनडीपीएस अधिनियम 1985 की धारा 10 के तहत राज्य सरकार को प्रदत्त शक्तियों के आधार पर नियंत्रित वातावरण में औषधीय औऱ वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए किसी भी भांग के पौधे की खेती, उत्पादन, निर्माण, कब्जा. परिवहन, आयात अंतर राज्य, निर्यात अंतर राज्य, बिक्री, खरीद खपत या भांग (चरस को छोड़कर) की खेती की अनुमति, नियंत्रण और विनियमन के लिए हिमाचल प्रदेश एनडीपीएस नियम 1989 में संशोधन किया जाएगा। एनडीपीएस अधियनियम 1985 की धारा 14 के तहत केवल फाइबर या बीज प्राप्त करने या बागवानी और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किसी भी भांग के पौधे की अनुमति देने के लिए कुछ शर्तों के अधीन सामान्य या विशेष आदेश पारित किया जाना चाहिए।
खेती को लेकर उत्पादों के निर्माण की प्रक्रियाओं के लिए मानक संचालन प्रक्रियाएं विकसित की जाएगी। एक राज्य स्तरीय प्राधिकरण का गठन किया जाएगा जो गैर मादक उद्देश्यों के लिए भांग की खेती को विनियमित करने में शामिल प्रक्रियाओं (बीज बैंक की स्थापना, बीज वितरण, उपज की खरीद और औद्योगिक और फार्मा इकाइयां की स्थापना) के संबंध में निर्णय लेने के लिए एकल खिड़की प्रणाली प्रदान करेगा।
कृषि/बागवानी विभाग द्वारा अनुसंधान एवं विकास विशेषज्ञ व विश्वविद्यालयों के समन्वय से बीज बैंक विकसित किए जा सकते हैं। सीएसके कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर और डॉ वाईएस परमार विश्वविद्यालय नौणी की सेवाओं का उपयोग कर अनुसंधान एवं विकास तकनीक विकसित की जा सकती है। भूमि की जियो टैगिंग राजस्व, आईटी और पर्यावरण विज्ञान प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा की जाएगी।
आय का कुछ प्रतिशत अनुसंधान और विकास जागरूकता अभियान और क्षमता निर्माण अभ्यास के लिए अलग रखा जाना चाहिए। अतिरिक्त कार्य करने के लिए राज्य आबकारी व कराधान विभाग को मौजूदा संख्या से अधिक विशेष कर्मचारी उपलब्ध करवाए जाएं।
Cannabis
शिमला। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद सुरेश कश्यप ने कहा कि कांग्रेस सरकार सेब विरोधी सरकार है। उन्होंने कहा कि एक जगह सेब बागवान परेशान हैं और सरकार इनको और ज्यादा परेशान करने का काम कर रही है, जिस सेब बागवान ने अपने खराब सेब अस्थाई नाले में परवाह करने का कार्य किया, इस नकारात्मक सरकार ने उस बागवान को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के माध्यम से एक लाख का जुर्माना लगा दिया।
उन्होंने कहा कि सरकार स्पष्ट करे, सेब में ऐसे कौन से केमिकल होते हैं, जिसके कारण प्रदूषण फैलने का खतरा होता है। अगर तुलना की जाए तो अनेकों प्रकार के खाद्य पदार्थ हैं, जो खराब होने के बाद जगह-जगह फेंके जाते हैं, तो क्या उनको भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा इसी प्रकार के जुर्माना लगाया जाता है। अगर यही मापदंड है तो सरकार के अनेकों उपक्रम भी इस दायरे में आते हैं, जिनको इस प्रकार की भारी पेनल्टी भरनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि मौसम की मार से हिमाचल की 6,000 करोड़ की सेब आर्थिकी पर संकट गहरा गया है। बगीचों में पेड़ों से पत्ते झड़ गए हैं, जिसके चलते बागवानों को समय से पहले फसल तोड़नी पड़ रही है। आकार और रंग न सुधरने के कारण बागवानों को मंडियों में फसल के उचित दाम नहीं मिल रहे हैं।
हिमाचल में करीब साढ़े तीन लाख परिवार सेब आर्थिकी से जुड़े हैं। प्रदेश में 7,000 फीट से अधिक ऊंचाई वाले बगीचों में सेब की फसल बुरी तरह प्रभावित हुई है। 15 सितंबर के बाद जहां फसल टूटनी थी, वहां क्वालिटी न बनने के कारण बागवानों को निर्धारित समय से करीब दो हफ्ते पहले फसल तोड़नी पड़ रही है। इस साल सीजन की शुरूआत से ही सेब की फसल मौसम की मार से प्रभावित है।
सर्दियों में बर्फबारी कम होने के बाद असमय भारी बारिश से सेब की फसल को नुकसान हुआ है। इस साल प्रदेश में सामान्य के मुकाबले करीब 35 फीसदी ही फसल है। उस पर बीमारियों ने बागवानों की कमर तोड़ दी है।
कश्यप का कहना है कि मौसम की मार से सेब की फसल को भारी नुकसान हुआ है। प्रदेश के लाखों लोगों की आर्थिकी संकट में आ गई है। सेब उत्पादन की लागत लगातार बढ़ रही है और पैदावार घट रही है। सरकार को समय रहते गंभीर और प्रभावशाली कदम उठाने होंगे।
शिमला। पीएम नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के बाद केंद्र सरकार ने वाशिंगटन एप्पल पर आयात शुल्क कम करने का फैसला लिया है। इस फैसले का हिमाचल कांग्रेस विरोध कर रही है। कांग्रेस नेताओं ने इससे सेब बागवानों को नुकसान होने और हिमाचली सेब का अस्तित्व ही खतरे में पड़ने की बात कही है। वहीं, सेब की इंपोर्ट ड्यूटी 20 फीसदी घटाने पर कांग्रेस के हमले का हिमाचल भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राजीव बिंदल ने जवाब दिया है।
बिंदल ने कहा है कि विदेशी सेब पर इंपोर्ट ड्यूटी लगाने का काम भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने किया और अब एक निश्चित मूल्य पर सेब खरीदने का फैसला लिया गया है। कांग्रेस पार्टी की सरकार लोगों का ध्यान भटकाने के लिए इसको मुद्दा बना रही है। आज जरूरत है, बेमोसमी बारिश व ओलावृष्टि से जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई की जाए। किसानों को भारी बारिश के कारण काफी नुकसान हुआ है। यह सरकार आपदा से निपटने में असफल हुई है। गारंटियों का कहीं नाम नहीं है। महिलाएं 1,500 का इंतजार कर रही है। सरकार केंद्र से जो मदद मिल रही है, उसका जिक्र नहीं करती है।
बता दें कि केंद्र सरकार की ओर से विदेशी सेब पर आयात शुल्क कम करने पर कांग्रेस बिफर गई है। कांग्रेस ने इस फैसले को पूरी तरह किसान और बागवान विरोधी करार दिया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने विदेशी सेब का आयात शुल्क 100 फीसदी करने का झूठा वादा बागवानों से किया था। आयात शुल्क बढ़ाने के बजाय 20 फीसदी कम करना सेब बागवानी से जुड़े लाखों लोगों के साथ अन्याय है।
मुख्यमंत्री के प्रधान मीडिया सलाहकार नरेश चौहान ने कहा कि प्रदेश के लाखों परिवार सेब की अर्थव्यवस्था से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि लगभग 7 लाख लोग प्रदेश के अंदर सेब की अर्थव्यवस्था से सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं। बागवान से लेकर रेहड़ी लगाने वाले तक हर कोई इसका हिस्सा है। नरेश चौहान ने प्रधानमंत्री मोदी को निशाने पर लेते हुए कहा कि पीएम मोदी ने सेब बागवानों से चुनावी वादे किए, लेकिन अमेरिका दौरे पर जाकर सेब पर लगने वाली इंपोर्ट ड्यूटी को 20 फीसदी कम कर दिया।
बागवानों की ओर से 100 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी की मांग की जाती रही है, लेकिन केंद्र सरकार ने 70 फीसदी ड्यूटी को घटाकर 50 फीसदी कर दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार बागवानों के साथ है। उन्होंने प्रदेश भाजपा नेताओं से भी इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट करने की बात कही है। प्रदेश के भाजपा नेता बताएं कि क्या वे प्रदेश के सेब बागवानों के साथ हैं या केंद्र सरकार के फैसले के साथ हैं। उन्होंने मांग की है कि केंद्र सरकार को सेब के आयात शुल्क को बढ़ाकर 100 फीसदी करना चाहिए।
शिमला। हिमाचल के शिमला में आईजीएमसी अस्पताल में आग लगने के मामले में कैंटीनम संचालक के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। आग से आईजीएमसी के नए ओपीडी ब्लॉक की संपूर्ण कैंटीन, हॉल, किचन और स्टोर को क्षति पहुंची है। पांच चिकित्सक कक्ष जोकि कैंटीन के समकक्ष हैं, को भी नुकसान पहुंचा है।
नए ओपीडी भवन की लिफ्टों को भी क्षति पहुंची है। आईजीएमसी चिकित्सा अधीक्षक ने बताया कि अब सभी ओपीडी को पुराने ओपीडी ब्लॉक में शिफ्ट कर दिया गया है। यह व्यवस्था हादसाग्रस्त ओपीडी भवन के मुरम्मत कार्य पूर्ण होने तक बनी रहेगी। इसके लिए पीडब्ल्यूडी सिविल और इलेक्ट्रिकल वर्ग को लिख दिया गया है। उनसे क्लेयरेंस के बाद ही नए भवन में दोबारा ओपीडी सेवाएं शुरू होंगी। इसके लिए शीघ्र कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
बता दें कि हिमाचल की राजधानी शिमला के IGMC अस्पताल में गुरुवार सुबह आग लग गई। आज सुबह करीब 8:50 बजे आईजीएमसी के नए भवन के टॉप फ्लोर में भयानक आग लग गई। आग लगने की खबर फैलते ही अस्पताल में अफरातफरी मच गई। आग इतनी भयानक थी कि उसका धुआं काफी दूर से भी नजर आ रहा था।
आईजीएमसी में आग लगने से लाखों का नुकसान हुआ है। IGMC में बनी ओपीडी के टॉप फ्लोर में बनी कैंटीन में आग लगी, जिसमें देखते ही देखते पूरी मंजिल को राख के ढेर में तब्दील कर दिया। सूचना मिलने के बाद पहुंची अग्निशमन की टीम ने कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया। गनीमत ये रही कि भीड़भाड़ वाले अस्पताल में किसी तरह का जानी नुकसान नहीं हुआ है।
कालाअंब। हिमाचल के सिरमौर जिला में मारकंडा नदी में बिहार निवासी युवक डूब गया है।बता दें कि राम कुमार (18) पुत्र कबीर शर्मा निवासी भंदौरा जिला सिरसा बिहार कालाअंब में उद्योग में काम करता था। आज अपने दोस्तों के साथ कालाअंब स्थित मारकंडा नदी की तरफ गया था। नदी के किनारे सेल्फी ले रहे थे।
अचानक राम कुमार का बैलेंस बिगड़ा और वह नदी में गिर गया। मामला की सूचना कालाअंब पुलिस स्टेशन को मिली। सूचना मिलने के बाद कालाअंब पुलिस स्टेशन की टीम मौके पर पहुंची और राम कुमार के शव को नदी से निकालकर अपने कब्जे में ले लिया। मामले में कार्रवाई जारी है। पुलिस ने युवक के परिजनों को सूचित कर दिया गया है।