शिमला। हिमाचल में लावारिस पशुओं, आवारा कुत्तों और बंदरों की काफी समस्या है। कई जगहों पर तो कुत्तों और बंदरों के काटने के मामले सामने आते हैं। राजधानी शिमला में तो कुत्तों और बंदरों दोनों से ही लोग काफी परेशान हैं। सर्दियों में आवारा कुत्ते और बंदर और भी उग्र हो जाते हैं। कुत्तों और बंदरों के काटने के मामलों में इजाफा होता है। हालांकि, इसके कई कारण माने जा सकते हैं। पर एक कारण यह भी है कि सर्दियों में आवारा कुत्तों और बंदरों को खाना कम मिलता है। इससे वह उग्र हो जाते हैं।
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शिमला जिला अस्पताल दीन दयाल उपाध्याय के एमएस (MS) डॉ. लोकेन्द्र शर्मा ने बताया कि पिछले 4 माह में अस्पताल में बंदरों, कुत्तों और बिल्ली के काटने के करीब 977 मामले आए हैं। इसमें 439 आवारा कुत्तों के काटने के मामले हैं। बाकी बंदरों, बिल्ली और पालतू कुत्तों के काटने के हैं। उन्होंने बताया कि सर्दियों में आवारा कुत्तों और बंदरों को खाना कम मिलता है। इससे वे उग्र हो जाते हैं। जब वे उग्र होंगे तो ऐसे मामले सामने आएंगे।
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कुत्ते और बंदर के काटने पर क्या करें
जिला अस्पताल दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल के अस्पताल के एमएस (MS) डॉ. लोकेन्द्र शर्मा ने बताया कि अगर कुत्तों, बंदरों आदि के काटने की स्थिति किसी के समक्ष आए तो तुरंत खुले पानी और साबुन से तीन से चार मिनट तक घाव को अच्छी तरह धोएं, ताकि लार जख्म में ज्यादा देर तक नहीं रह सके। अगर सेवलोन है तो उससे भी साफ कर सकते हैं। अगर सेवलोन उपलब्ध न हो तो पानी और साबुन से घाव को धोएं। इसके बाद नजदीकी अस्पताल में जाएं।
उधर, नगर निगम के आयुक्त आशीष कोहली का कहना है कि नगर निगम को डॉग रुल्स और कोर्ट की रूलिंग के हिसाब से चलना पड़ता है। डॉग रुल्स और कोर्ट की रूलिंग के अनुसार किसी भी आवारा कुत्ते को एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट नहीं किया जा सकता है। लोगों की मांग भी रहती है कि कुत्तों को उनके क्षेत्र से हटाया जाए, पर ऐसा नहीं किया जा सकता है।
वैज्ञानिक रूप से भी ऐसा करना ठीक नहीं होता है। क्योंकि यह डॉग से व्यवहार के लिए ठीक नहीं है। नगर निगम ने कुत्तों की संख्या में कमी लाने के लिए स्टरलाइजेशन अभियान चलाया है।