इस दिन भी गंगा दशहरा की ही तरह दान करना माना जाता है बहुत शुभ
ज्येष्ठ मास की शुक्ल की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं । इस एकादशी को भीम सैनी एकादशी भी कहा जाता है। महीने में जो एकादशी व्रत होते हैं इस दिन श्री हरि विष्णु की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु को यह व्रत सबसे ज्यादा प्रिय है। इस व्रत में बहुत गर्मी के बीच पानी नहीं पीने के कारण कठिन व्रत माना जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु का मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ) का जाप करना बहुत शुभ होता है। व्रत के नियम एक दिन पहले गंगा दशहरा से ही शुरू हो जाते हैं। इस दिन भी गंगा दशहरा की ही तरह दान करना बहुत शुभ माना जाता है। कोशिश करें इस दिन गरीबों और ब्रह्मणों को कपड़े, छाता, जूता, फल, मटका, पंखा, शर्बत, पानी, चीनी आदि का दान करना चाहिए।
इस दिन भी किसी पवित्र नदी में स्नान कर सकते हैं तो ठीक, नहीं तो घर में गंगा जल मिलाकर स्नान करें। स्नान के बाद घर के मंदिर में पूजा करें। पितरों के लिए तर्पण करें। निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु को पीले रंग के कपड़े, फल और अन्न अर्पित करना चाहिए। भगवान विष्णु की पूजा के उपरांत इस चीजों को किसी ब्राह्मण को दान देना चाहिए।
इस एकादशी पर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी उत्तम होता है। अगर निर्जला एकादशी का व्रत न भी कर पाएं तो इस दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान अवश्य करें।
ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। यह व्रत सभी एकादशी में श्रेष्ठ माना गया है। जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु के निमित्त यह व्रत निर्जल रखा जाता है।
पांडवों में युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल सहदेव द्रौपदी एवं कुंती एकादशी का व्रत रखते थे किंतु पाण्डवों में भीमसेन एकादशी का व्रत नहीं रख पाते थे। भीमसेन खाने-पीने का अत्यधिक शौक़ीन था और अपनी भूख को नियन्त्रित करने में सक्षम नहीं था। इसी कारण वह एकादशी व्रत को नही कर पाता था। भीम के अलावा सभी पाण्डव भाई और द्रौपदी साल की सभी एकादशी व्रतों को पूरी श्रद्धा भक्ति से किया करते थे। भीमसेन अपनी इस कमजोरी को लेकर लज्जा आती थी। भीमसेन को लगता था कि वह एकादशी व्रत न करके भगवान विष्णु का अनादर कर रहा हूँ । इस दुविधा से उभरने के लिए भीमसेन महर्षि व्यास के पास गये तब महर्षि व्यास ने भीमसेन को साल में एक बार निर्जला एकादशी व्रत को करने कि सलाह दी और कहा कि निर्जला एकादशी साल की चौबीस एकादशियों के तुल्य है। इसी पौराणिक कथा के बाद निर्जला एकादशी भीमसेनी एकादशी और पाण्डव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।