सीटू की मांग, नियमित सरकारी कर्मचारी का मिले दर्जा
शिमला। सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश ने प्रदेश सरकार द्वारा आउटसोर्स कर्मचारियों को हिमाचल प्रदेश कौशल विकास (स्किल डेवलपमेंट) एवं रोज़गार निगम में मर्ज करने के निर्णय को आउटसोर्स कर्मियों के साथ भद्दा मजाक करार दिया है, इसे शोषणकारी व्यवस्था करार दिया है। सीटू ने प्रदेश सरकार को चेताया है कि वह प्रदेश के करीब चालीस हजार आउटसोर्स कर्मियों की आंखों में धूल झोंकना बंद करें व इनके लिए ठोस नीति बनाकर इन्हें नियमित सरकारी कर्मचारी का दर्जा दें।
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सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने आउटसोर्स कर्मियों के संदर्भ में प्रदेश सरकार की कैबिनेट के निर्णय को आई वॉश करार दिया है। उन्होंने कहा कि 1 – 2 अक्टूबर को मंडी में होने वाले सीटू राज्य सम्मेलन में सरकार के इस आई वॉश के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनेगी। उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था हरियाणा सरकार की तर्ज़ पर की गई है, जहां पर इस प्रकार का निगम बनने के बाद आज भी आउटसोर्स कर्मियों का शोषण जारी है व इन्हें सरकारी कर्मियों की तर्ज़ पर सुविधाएं नहीं मिल रही हैं।
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हिमाचल प्रदेश के आउटसोर्स कर्मी व सीटू राज्य कमेटी इस तरह की व्यवस्था को पूरी तरह खारिज़ करती है। इस निगम के बनने के बाद प्रदेश के आउटसोर्स कर्मियों में बहुतायत अकुशल मज़दूर इस निगम के दायरे से बाहर रह जाएंगे, जो कुशल कर्मी इस निगम के दायरे में आएंगे भी, वह भी सरकारी कर्मचारी की तर्ज़ पर सुविधाएं हासिल नहीं कर पाएंगे। पहले ये कर्मी निजी ठेकेदारों के ज़रिए कार्यरत थे, अब वे सीधे सरकारी ठेकेदारी प्रथा अथवा नैगमिक व्यवस्था के अधीन हो जाएंगे व जिंदगीभर ठेकेदारी, आउटसोर्स प्रथा व निगम के अधीन ही रहेंगे। वे कभी भी नियमित नहीं होंगे। अगर वाकई में प्रदेश सरकार इन कर्मचारियों के प्रति गंभीर है तो वह इन्हें निगम में मर्ज करने की अधिसूचना को रद्द करके इन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने की घोषणा करें।