हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की अपील को खारिज किया
शिमला। हाईकोर्ट ने एक स्वतंत्रता सेनानी की विधवा को पेंशन देने के आदेश को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की एक अपील को खारिज करते हुए केंद्र सरकार को उसे ब्याज सहित पेंशन के सभी बकाया का भुगतान करने का निर्देश दिया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि मलीमथ और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रीवा दुआ की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश द्वारा एक रिट याचिका में पारित आदेश को चुनौती देते हुए भारत संघ द्वारा दायर एक अपील में ये आदेश पारित किए।
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रिट याचिकाकर्ता ब्राह्मी देवी ने स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय धनी राम की विधवा होने के नाते उन्हें स्वतंत्रता सेनानी पेंशन देने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश देने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया था कि उनके पति स्वर्गीय धनी राम 1946 तक डोगरा रेजिमेंट में सिपाही के पद पद सेवारत रहे। 1939 से 1945 तक भारतीय सेना में शामिल होकर द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया। उन्हें पैसिफिक स्टार, रक्षा पदक और युद्ध पदक से सम्मानित किया गया। उन्हें समान रूप से पदस्थापित व्यक्तियों के साथ राष्ट्र के स्वतंत्रता सेनानी घोषित किया गया था।
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1973 में हिमाचल प्रदेश ने उनके पति सहित बिलासपुर, मंडी, हमीरपुर और कुल्लू जिलों में स्वतंत्रता सेनानियों को ताम्रपत्र प्रदान करने के लिए एक पत्र जारी किया। स्वर्गीय धनी राम का नाम एक दूसरे स्वतंत्रता सेनानी के साथ था। 15 अगस्त 1973 स्वर्गीय धनी राम को ताम्रपत्र प्रदान किया गया। डीसी बिलासपुर ने उन्हें एक पहचान पत्र भी जारी किया। धनी राम के पेंशन अनुदान के अनुरोध पर राज्य द्वारा विचार नहीं किया गया। दो मई 2010 को उनका निधन हो गया। इसके बाद याचिकाकर्ता उनकी विधवा ने पेंशन का दावा किया। प्रतिवादियों द्वारा दावा स्वीकार नहीं किया गया तो याचिकाकर्ता द्वारा रिट याचिका दायर की गई।
एकल पीठ ने 29 सितंबर 2016 को याचिका स्वीकार की और यह पाया कि यह रिकॉर्ड में साबित हो गया है कि याचिकाकर्ता का पति स्वतंत्रता सेनानी था और इसलिए 4 अप्रैल 1974 की तारीख से स्वतंत्रता सेनानी पेंशन के अनुदान का हकदार था। एकल पीठ ने निर्देश दिया था कि पेंशन आठ सप्ताह के भीतर जारी की जाए, ऐसा न करने पर प्रतिवादी उक्त पेंशन पर 9% ब्याज का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होंगे।
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इसके बाद केंद्र सरकार ने एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी। अपील का निपटारा करते हुए न्यायालय ने पाया कि रिकॉर्ड पर पर्याप्त सामग्री है, जो अपीलकर्ताओं द्वारा विवादित नहीं है। लश्करी राम स्वतंत्रता संग्राम में रिट याचिकाकर्ता के साथ थे और दोनों के नाम ताम्रपत्र की सूची में शामिल थे। न्यायालय ने कहा कि यदि एक व्यक्ति को लाभ दिया जाता है, तो दूसरे को भी वही लाभ दिया जाना चाहिए। इसलिए एकल न्यायाधीश को रिट याचिकाकर्ता को 4 अप्रैल, 1974 से पेंशन देना उचित था। अदालत ने यह भी देखा कि जब मामले के तथ्य विवाद में नहीं हैं और जब यह स्वीकार किया जाता है कि रिट याचिकाकर्ता एक स्वतंत्रता सेनानी है, तो अनिवार्य रूप से वह उक्त लाभ का हकदार होगा और राज्य उसे लाभ से वंचित नहीं कर सकता। कोर्ट ने केंद्र सरकार को 23 अगस्त, 2021 तक अनुपालन दायर करने का निर्देश दिया है।