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शारदीय नवरात्र का सातवां दिन : ये है मां कालरात्रि की पूजा विधि, बीज मंत्र व आरती

शारदीय नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना की जाती है। यह मां दुर्गा का रौद्ध रूप भी है जिसका वर्ण काला है इसलिए इन्हें मां काली या कालिका के नाम से भी जाना जाता है। माता का यह रूप अत्यंत भयंकर है परंतु भक्तों के लिए अत्यंत शुभ फलदायी है। माना जाता है कि मां काली की पूजा करने से व्यक्ति का सभी प्रकार का भय खत्म होता है।

माना जाता है कि माता कालरात्रि की आराधना से साधक को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हो सकती हैं। तंत्र मंत्र के साधकों में मां कालरात्रि की पूजा विशेष रूप से प्रचलित है। यही कारण है कि मां कालरात्रि की पूजा मध्य रात्रि में करने का विधान है। साथ ही यह भी माना गया है कि मां काली की पूजा से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है। क्योंकि मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं इसलिए हिंदू धर्म में उन्हें वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है।

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मां कालरात्रि की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज नाम के राक्षसों ने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। इन राक्षसों को हाहाकर से परेशान होकर सभी देवतागण शिवजी के पास गए और उनसे इस समस्या से बचने का कोई उपाय मांगने लगे। तब भगवान शिव ने माता पार्वती से इन राक्षसों का वध करने के लिए कहा। तब माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण कर शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया।

लेकिन जब रक्तबीज के वध की बारी आई तो उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों की संख्या में रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए। क्योंकि रक्तबीज को यह वरदान मिला था कि यदि उनके रक्त की बूंद धरती पर गिरती है तो उसके जैसा एक और दानव उत्पन्न हो जाएगा। ऐसे में दुर्गा ने अपने तेज से देवी कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का वध किया और मां कालरात्रि ने उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस तरह रक्तबीज का अंत हुआ।

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मां कालरात्रि की पूजा विधि

देवी पार्वती के कालरात्रि रूप की पूजा करने के लिए सुबह और रात्रि दोनों का समय शुभ माना जाता है।
इस रूप में मां की पूजा करने के लिए सुबह स्नान करके लाल कंबल के आसन पर बैठे।
मां कालरात्रि की तस्वीर स्थापित करें, वहां गंगाजल का छिड़काव करें।
इसके बाद दीपक जलाकर पूरे परिवार के साथ मां के जयकारे लगाएं।
दुर्गा चालीसा का पाठ करें, हवन करें और मां कालरात्रि को गुड़ से बनाएं मालपुए का भोग जरूर लगाएं।
आप चाहे तो रुद्राक्ष की माला से मां के मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।

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मां कालरात्रि पूजा मंत्र

मां कालरात्रि की पूजा के दिन लाल चंदन की माला से इस मंत्र का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति की सभी मुरादें पूरी होती हैं साथ ही जीवन में आ रहे कष्टों से भी मुक्ति मिलती है …

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते।।

मां कालरात्रि की आरती

कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
काल के मुंह से बचाने वाली॥

दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार॥

पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥

खडग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥

कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥

सभी देवता सब नर-नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥

रक्तदंता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥

ना कोई चिंता रहे बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी॥

उस पर कभी कष्ट ना आवें।
महाकाली माँ जिसे बचाबे॥

तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि माँ तेरी जय॥

 

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शारदीय नवरात्र का छठा दिन : ये है मां कात्यायनी की पूजा विधि, बीज मंत्र व आरती

शारदीय नवरात्र के छठे दिन मां दुर्गा के छठे रूप मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण इनका नाम कात्यायनी रखा गया। मां कात्यायनी की पूजा से विवाह संबंधी समस्याएं दूर होती हैं।

धार्मिक मान्यता है कि इनकी कृपा से योग्य वर और विवाह की सभी अड़चनें दूर हो जाती हैं। ये ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। मां कात्यायनी सफलता और यश का प्रतीक हैं। भगवान कृष्ण को पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्ही की पूजा कालिंदी नदी के तट पर की थी। ये ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

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मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत ही भव्य और दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। शेर पर सवार मां की चार भुजाएं हैं, इनके बायें हाथ में कमल, तलवार व दाहिनें हाथों में स्वास्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है।

मां कात्यायनी की पूजा अमोघ फलदायिनी हैं, मान्यता है कि देवी कात्यायनी जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरूप की पूजा करने से शरीर कांतिमान हो जाता है।

इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है और साधक के रोग, शोक, संताप और भय आदि सर्वथा नष्ट हो जाते हैं। शत्रुओं पर विजय प्राप्ति के लिए भी मां कात्यायनी की पूजा की जाती है यह स्वयं नकारात्मक शक्तियों का अंत करने वाली देवी हैं।

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मां कात्यायनी पूजा विधि
  • सबसे पहले स्नान-ध्यान के बाद शुभ रंगों के वस्त्र पहनकर कलश पूजा करें।
  • इसके बाद मां दुर्गा के स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा करें।
  • पूजा प्रारंभ करने से पहले मां को स्मरण करें और हाथ में फूल लेकर संकल्प जरूर लें।
  • इसके बाद वह फूल मां को अर्पित करें।
  • फिर कुमकुम, अक्षत, फूल आदि और सोलह श्रृंगार माता को अर्पित करें।
  • उसके बाद भोग अर्पित करें। फिर जल अर्पित करें और घी के दीपक जलाकर माता की आरती करें।
  • देवी की पूजा के साथ भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए।
  • मां कात्यायनी को शहद बहुत ही प्रिय है, इसलिए पूजा के समय मां कात्यायनी को शहद का भोग अवश्य लगाएं ऐसा करने से स्वयं के व्यक्तित्व में निखार आता है।
  • देवी को पीला और लाल रंग अतिप्रिय है। इस वजह से पूजा में आप मां कात्यायनी को लाल और पीला रंग के गुलाब का फूल अर्पित करें इससे मां कात्यायनी आप पर प्रसन्न होंगी।
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मां कात्यायनी पूजा मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

चंद्र हासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना|
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानवघातिनि||
अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें

मां कात्यायनी की आरती

जय जय अम्बे, जय कात्यायनी।
जय जगमाता, जग की महारानी।

बैजनाथ स्थान तुम्हारा।
वहां वरदाती नाम पुकारा।

कई नाम हैं, कई धाम हैं।
यह स्थान भी तो सुखधाम है।

हर मंदिर में जोत तुम्हारी।
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी।

हर जगह उत्सव होते रहते।
हर मंदिर में भक्त हैं कहते।

कात्यायनी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की।

झूठे मोह से छुड़ाने वाली।
अपना नाम जपाने वाली।

बृहस्पतिवार को पूजा करियो।
ध्यान कात्यायनी का धरियो।

हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी।

जो भी मां को भक्त पुकारे।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे।

 

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शारदीय नवरात्र का पांचवां दिन : ये है मां स्कंदमाता की पूजा विधि, बीज मंत्र व आरती

शारदीय नवरात्र के पांचवें दिन मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप यानी मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।

सिंह पर सवार स्कन्दमाता देवी की चार भुजाएं हैं, जिसमें देवी अपनी ऊपर वाली दांयी भुजा में बाल कार्तिकेय को गोद में उठाए उठाए हुए हैं और नीचे वाली दांयी भुजा में कमल पुष्प लिए हुए हैं ऊपर वाली बाईं भुजा से इन्होने जगत तारण वरद मुद्रा बना रखी है व नीचे वाली बाईं भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और ये कमल के आसान पर विराजमान रहती हैं इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है।

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सच्चे मन से पूजा करने पर स्कंदमाता सभी भक्तों की इच्छाओं को पूरी करती हैं और कष्टों को दूर करती हैं। संतान प्राप्ति के लिए माता की आराधना करना उत्तम माना गया है।

माता रानी की पूजा के समय लाल कपड़े में सुहाग का सामान, लाल फूल, पीले चावल और एक नारियल को बांधकर माता की गोद भर दें। ऐसा करने से जल्द ही घर में किलकारियां गूंजने लगती हैं। स्कंदमाता मोक्ष का मार्ग दिखाती हैं और इनकी पूजा करने से ज्ञान की भी प्राप्ति होती है। माता का यह स्वरूप ममता की मूर्ति, प्रेम और वात्सल्य का साक्षात प्रतीक हैं।

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मां स्कंदमाता पूजन विधि
  • प्रात: काल स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • इसके बाद मां का पूजन आरंभ करें एवं मां की प्रतिमा को गंगाजल से शुद्ध करें।
  • मां के श्रृंगार के लिए शुभ रंगों का इस्तेमाल करना श्रेष्ठ माना गया है।
  • स्कंदमाता और भगवान कार्तिकेय की पूजा विनम्रता के साथ करनी चाहिए।
  • पूजा में कुमकुम, अक्षत, पुष्प, फल आदि से पूजा करें।
  • चंदन लगाएं, माता के सामने घी का दीपक जलाएं।
  • इसके बाद फूल चढ़ाएं व भोग लगाएं।
  • मां की आरती उतारें तथा इस मंत्र का जाप करें।
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मां स्कंदमाता के मंत्र

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

मां स्कंदमाता का प्रिय रंग और भोग

भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है। आरती के बाद 5 कन्याओं को केले का प्रसाद बांटें। मान्यता है इससे देवी स्कंदमाता बहुत प्रसन्न होती है और संतान पर आने वाले सभी संकटों का नाश करती है।

मां स्कंदमाता की आरती

जय तेरी हो स्कंदमाता,
पांचवां नाम तुम्हारा आता।
सब के मन की जानन हारी,
जग जननी सब की महतारी। जय तेरी हो स्कंदमाता
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं,
हर दम तुम्हें ध्याता रहूं मैं।
कई नामों से तुझे पुकारा,
मुझे एक है तेरा सहारा। जय तेरी हो स्कंदमाता
कहीं पहाड़ों पर है डेरा,
कई शहरो में तेरा बसेरा।
हर मंदिर में तेरे नजारे,
गुण गाए तेरे भक्त प्यारे। जय तेरी हो स्कंदमाता
भक्ति अपनी मुझे दिला दो,
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो।
इंद्र आदि देवता मिल सारे,
करे पुकार तुम्हारे द्वारे। जय तेरी हो स्कंदमाता
दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए,
तुम ही खंडा हाथ उठाएं।
दास को सदा बचाने आईं,
चमन की आस पुराने आई। जय तेरी हो स्कंदमाता

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मां स्कंदमाता स्तोत्र

नमामि स्कन्धमातास्कन्धधारिणीम्।
समग्रतत्वसागरमपारपारगहराम्॥

शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्‍‌नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम्॥

महेन्द्रकश्यपाíचतांसनत्कुमारसंस्तुताम्।
सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थनिर्मलादभुताम्॥

मुमुक्षुभिíवचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम्।
नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम्।।

सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम्।
सुधामककौपकारिणीसुरेन्द्रवैरिघातिनीम्॥

शुभांपुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम्।
तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम्॥

सहस्त्रसूर्यराजिकांधनज्जयोग्रकारिकाम्।
सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमज्जुलाम्॥

प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम्।
स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम्॥

इनन्तशक्तिकान्तिदांयशोथमुक्तिदाम्।
पुन:पुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुराíचताम॥

जयेश्वरित्रिलाचनेप्रसीददेवि पाहिमाम्॥

 

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शारदीय नवरात्र का चौथा दिन : ये है मां कूष्मांडा की पूजा विधि, बीज मंत्र व आरती

शारदीय नवरात्र में चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है। मां कूष्मांडा को ब्रह्मांड की आदिशक्ति माना जाता है साथ ही माता दुर्गा के इस रूप को सबसे उग्र भी माना गया है। माता दु्र्गा के चौथे स्वरूप मां कूष्मांडा की 8 भुजाएं होती हैं इसलिए इन्हें अष्टभुजा भी कहा जाता है।

मां कूष्मांडा के आठ हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा और माला होती है और इनके आठवें हाथ में जप की माला है। मां कुष्मांडा सिंह पर सवार होती हैं।

देवी कूष्मांडा की साधना और पूजा से आरोग्य की प्राप्ति होती है। देवी अपने भक्तों को हर संकट और विपदा से निकालकर सुख वैभव प्रदान करती हैं। साथ ही जो देवी कूष्मांडा की भक्ति करते हैं माता उसके लिए मोक्ष पाने का मार्ग सहज कर देती हैं। माता के भक्तों में तेज और बल का संचार होता है। इन्हें किसी प्रकार का भय नहीं रहता है।

मां कूष्मांडा की पूजा विधि

सुबह स्‍नानादि से निवृत्त होकर देवी कूष्मांडा का ध्यान करें।
इसके बाद दुर्गा के कूष्‍मांडा रूप की पूजा करें।
पूजा में मां को लाल रंग के पुष्‍प, गुड़हल या गुलाब अर्पित करें।
इसके साथ ही सिंदूर, धूप, दीप और नैवेद्य भी माता को चढ़ाएं।
माता के इस स्वरूप का ध्यान स्थान अनाहत चक्र है इसलिए देवी की उपासना में अनाहत चक्र के मिलते रंग जो हल्का नील रंग है उसी रंग के वस्त्रों को धारण करे। इससे माता के स्वरूप में ध्यान लगाना आसान होगा।

मां कूष्मांडा के मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

ओम देवी कूष्माण्डायै नमः॥

मां कुष्मांडा की आरती

कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥

पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी माँ भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे ।

भक्त कई मतवाले तेरे॥

भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥

तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥

तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

मां कूष्मांडा का स्तोत्र

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥

भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।

कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥

पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।

मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥

प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।

कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

 

कांगड़ा : बीड़ बिलिंग प्री पैराग्लाइडिंग वर्ल्ड कप में 32 देश के पैराग्लाइडर लेंगे भाग 

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बैजनाथ : पार्टी से लौट रहे थे तीन लोग, राजगुंधा के पास खाई में गिरी कार, गई जान

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वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू को किया सम्मानित 

 

सुप्रीम कोर्ट का समलैंगिक शादियों को मान्यता देने से इंकार, मौलिक अधिकार नहीं माना 

 

HRTC लगेज पॉलिसी फेल करने का षड्यंत्र, दो कंडक्टर बर्खास्त-रखेंगे अपना पक्ष

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ABHA कार्ड क्या है, जानिए इसके फायदे और कैसे बना सकते हैं पढ़ें डिटेल

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शारदीय नवरात्र का तीसरा दिन : ये है मां चंद्रघंटा की पूजा विधि, बीज मंत्र व आरती

शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाएगी। मां दु्र्गा का ये स्वरूप बेहद ही कल्याणकारी माना गया है। देवी चंद्रघंटा का स्वरूप परम शान्तिदायक और कल्याणकारी हैं। बाघ पर सवार मां चंद्रघंटा के शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला हैं।  इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान हैं, इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। 10 भुजाओं वाली देवी के हर हाथ में अलग-अलग शस्त्र विभूषित हैं। इनके गले में सफ़ेद फूलों की माला सुशोभित रहती हैं। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्धत रहने वाली होती है।

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इनके घंटे की सी भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य-राक्षस सदैव प्रकम्पित रहते हैं। दुष्टों का दमन और विनाश करने में सदैव तत्पर रहने के बाद भी इनका स्वरूप दर्शक और आराधक के लिए अत्यंत सौम्यता और शांति से परिपूर्ण रहता है। अतः भक्तों के कष्टों का निवारण ये शीघ्र ही कर देती हैं। इनका वाहन सिंह है। इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है। इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों की प्रेत-बाधादि से रक्षा करती है। आपको बताते हैं क्या है मां चंद्रघंटा की पूजा विधि, मंत्र और आरती …

मां चंद्रघंटा की पूजा विधि

  1. मां को शुद्ध जल और पंचामृत से स्नान कराएं।
  2. अलग-अलग तरह के फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर, अर्पित करें।
  3. केसर-दूध से बनी मिठाइयों या खीर का भोग लगाएं।
  4. मां को सफेद कमल, लाल गुडहल और गुलाब की माला अर्पण करें और प्रार्थना करते हुए मंत्र जप करें।
  5. इस तरह मां चंद्रघंटा की पूजा करने से साहस के साथ सौम्यता और विनम्रता में वृद्धि होती है।
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मां चंद्रघंटा बीज मंत्र

“या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।”

पिंडजप्रवरारूढा, चंडकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं, चंद्रघंटेति विश्रुता।।

मां चंद्रघंटा की आरती

जय मां चंद्रघंटा सुख धाम। पूर्ण कीजो मेरे काम।।
चंद्र समान तू शीतल दाती। चंद्र तेज किरणों में समाती।।

क्रोध को शांत बनाने वाली। मीठे बोल सिखाने वाली।।
मन की मालक मन भाती हो। चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।।

सुंदर भाव को लाने वाली। हर संकट मे बचाने वाली।।
हर बुधवार जो तुझे ध्याये। श्रद्धा सहित जो विनय सुनाय।।

मूर्ति चंद्र आकार बनाएं। सन्मुख घी की ज्योत जलाएं।।
शीश झुका कहे मन की बाता। पूर्ण आस करो जगदाता।।

कांची पुर स्थान तुम्हारा। करनाटिका में मान तुम्हारा।।
नाम तेरा रटू महारानी। भक्त की रक्षा करो भवानी।।

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शारदीय नवरात्र का दूसरा दिन : ये है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि, बीज मंत्र व आरती

शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप और नौ शक्तियों में से दूसरी शक्ति हैं। मां दुर्गा का यह स्वरूप ज्योर्तिमय है।

ब्रह्मा की इच्छाशक्ति और तपस्विनी का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी त्याग की प्रतिमूर्ति हैं। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। साथ ही कुंडली में मंगल ग्रह से जुड़े सारे दोषों से मुक्ति मिल जाती है।

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देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप है अर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप है। ब्रह्म का मतलब तपस्या होता है वहीं चारिणी का मतलब आचरण करने वाली। इस तरह ब्रह्माचारिणी का अर्थ है- तप का आचरण करने वाली देवी। मां ब्रह्माचारिणी के दाहिने हाथ में मंत्र जपने की माला और बाएं में कमंडल है।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से सभी कार्य पूरे होते हैं, रुकावटें दूर होती हैं और विजय की प्राप्ति होती है। इसके अलावा जीवन से हर तरह की परेशानियां भी खत्म होती हैं। आइए जानते हैं क्या है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि, बीज मंत्र और आरती ….

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मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
  • सबसे पहले ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान कर लें।
  • पूजा के लिए सबसे पहले आसन बिछाएं फिर उस आसन पर बैठकर मां की पूजा करें।
  • माता को फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि चढ़ाएं।
  • ब्रह्मचारिणी मां को भोगस्वरूप पंचामृत चढ़ाएं और मिठाई का भोग लगाएं।
  • इसके साथ ही माता को पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें।
  • इसके बाद मां ब्रह्मचारिणी के मंत्रों का जाप करें और फिर आरती करें।
मां ब्रह्माचारिणी बीज मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

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मां ब्रह्मचारिणी की आरती

जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।

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शारदीय नवरात्र का पहला दिन : ऐसे करें मां शैलपुत्री की पूजा, बीज मंत्र के साथ कीजिए आरती

शारदीय नवरात्र के पहले दिन घट स्थापना और मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इसी दिन से मां का आगमन होता है और देवी पक्ष की शुरुआत होती है। मान्यता है कि मां शैलपुत्री की पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। आइए जानते हैं नवरात्र के पहले दिन देवी मां के शैलपुत्री रूप की पूजा कैसे करनी चाहिए।

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मां शैलपुत्री पूजन विधि

  • प्रात: जल्दी उठकर स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • इसके बाद मंदिर को अच्छे से साफ करें।
  • पूजा के पहले अखंड ज्योति प्रज्वलित कर लें और शुभ मुहूर्त में घट स्थापना कर लें।
  • अब पूर्व की ओर मुख कर चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और माता का चित्र स्थापित करें।
  • सबसे पहले गणपति का आह्वान करें और इसके बाद हाथों में लाल रंग का पुष्प लेकर मां शैलपुत्री का आह्वान करें।
  • मां की पूजा के लिए लाल रंग के फूलों का उपयोग करना चाहिए।
  • मां को अक्षत, सिंदूर, धूप, गंध, पुष्प चढ़ाएं. माता के मंत्रों का जप करें।
  • घी से दीपक जलाएं, मां की आरती करें, शंखनाद करें, घंटी बजाएं और मां को प्रसाद अर्पित करें।
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  • या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
  • शिवरूपा वृष वहिनी हिमकन्या शुभंगिनी
    पद्म त्रिशूल हस्त धारिणी
    रत्नयुक्त कल्याणकारिणी
  • ओम् ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:
  • बीज मंत्र- ह्रीं शिवायै नम:
  • वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्
    वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्
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मां शैलपुत्री आरती

शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी

पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।

सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।

घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।

जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।

 

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शारदीय नवरात्र हो रहे शुरू, क्या है घट स्थापना का शुभ मुहूर्त, जानें

पितृपक्ष के समापन के साथ ही शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो जाती है। नवरात्र के नौ दिन में शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। घट स्थापना कर विधिवत मां की पूजा की जाती है।

नौ दिन में मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों को अलग-अलग पकवानों का भोग लगाया जाता है। आइए आपको बताते हैं कि इस साल शारदीय नवरात्र की शुरुआत कब से हो रही है और घट स्थापना का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा।

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वैसे तो शारदीय नवरात्र की शुरुआत 14 अक्टूबर 2023, शनिवार रात 11 बजकर 24 मिनट से ही हो रही है। इस समय सूर्य ग्रहण भी लगा होगा, लेकिन फिर भी ज्योतिष जानकारों के अनुसार सूर्य ग्रहण का नवरात्र की पूजा पर कोई असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि नवरात्र में घटस्थापना का महत्व होता है और इस दिन घट स्थापना सूर्य ग्रहण समाप्त होने के कुछ घंटों बाद होगी।

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15 अक्टूबर को आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि है और इसी दिन से नवरात्र की शुरुआत मानी जाएगी। 15 अक्टूबर, 2023 को सुबह 11 बजकर 44 मिनट से कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त शुरू हो रहा है और इस दिन दोपहर 12 बजकर 30 मिनट तक ये मुहूर्त रहेगा।

घट स्थापना या कलश स्थापना विधि
  • शारदीय नवरात्र के पहले दिन सुबह उठकर स्नान आदि करके साफ वस्त्र पहनें।
  • इसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करके गंगाजल छिड़कें।
  • इसके बाद लाल कपड़ा बिछाकर उस पर थोड़े चावल रखें।
  • मिट्टी के एक पात्र में जौ बो दें। इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें।
  • कलश में चारों ओर आम या अशोक के पत्ते लगाएं और स्वास्तिक बनाएं।
  • फिर इसमें साबुत सुपारी, सिक्का और अक्षत डालें।
  • एक नारियल पर चुनरी लपेटकर कलावा से बांधें और इस नारियल को कलश के ऊपर पर रखते हुए मां जगदंबे का आह्वान करें।
  • इसके बाद दीप जलाकर कलश की पूजा करें।
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शारदीय नवरात्र शुरू होने से पहले घर से निकाल दें ये चीजें वरना नाराज हो जाएंगी मां दुर्गा

शारदीय नवरात्र की शुरुआत जल्द होने वाली है। इस वर्ष शारदीय नवरात्र की शुरुआत 15 अक्टूबर (रविवार) से हो रही है। यदि आप माता रानी की कृपा पाना चाहते हैं तो नवरात्र के शुरू होने से पहले अपने घर से कुछ चीजों को निकाल फेंके, क्योंकि ये चीजें घर में नकारात्मकता लाती हैं।

ऐसी कौन की पांच चीजें हैं जो आपको नवरात्र से पहले घर से बाहर करनी है उनके बारे में आपको बताते हैं विस्तार से ….

शारदीय नवरात्र कब से हो रहे शुरू, क्या है घट स्थापना का शुभ मुहूर्त, जानें
कटी-फटी धार्मिक पुस्तकें करें प्रवाहित

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में कभी भी कटी-फटी धार्मिक पुस्तकें नहीं रखनी चाहिए। यदि कोई धार्मिक पुस्तक फट गई है, तो उसे नवरात्र से पहले बहते जल में प्रवाहित कर दें।

घर से बाहर करें खंडित मूर्तियां

सबसे पहले आपको घर से बाहर करनी है खंडित मूर्तियां। घर में किसी भी भगवान की खंडित मूर्ति नहीं रखनी चाहिए। इसे शुभ नहीं माना जाता है। अगर आपके घर में खंडित मूर्तियां हैं तो शारदीय नवरात्र के शुरू होने से पहले घर से इसको निकाल कर किसी पवित्र नदी में बहा देना चाहिए।

शारदीय नवरात्र में इन चार राशि वालों की खुलने वाली है किस्मत
बंद घड़ी रोके तरक्की

घर में बंद घड़ी रखने से परिवार के लोगों की तरक्की रुक जाती है और घर में नकारात्मकता बढ़ जाती है। इसलिए घर में बंद पड़ी घड़ी और अन्य फालतू सामान को नवरात्र शुरू होने से पहले हटा दें।

टूटा हुआ कांच लाए गरीबी

टूटा हुआ कांच या फिर इससे बनी चीजें रखने से घर में नकारात्मक ऊर्जा आकर्षित होती है, जिसके कारण आर्थिक स्थिति कमजोर होने लगती है। इसलिए नवरात्र शुरू होने से पहले घर से कांच की टूटी हुई चीजें निकाल दें।

पुराने जूते-चप्पल को निकालें

अगर आपके घर में पुराने जूते चप्पल पड़े हैं, जिनका इस्तेमाल आप नहीं करते हैं उन्हें नवरात्र शुरू होने से पहले घर से निकाल दें। वास्तु जानकारों के अनुसार घर में पुराने जूते, चप्पल रखने से नकारात्मक ऊर्जा आती है।

 

माता चिंतपूर्णी मंदिर नवरात्र मेले : बिना पंजीकरण दर्शन की नहीं होगी अनुमति
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हिमाचल : इस माह 9 दिन में चार बार आया भूकंप, अब कुल्लू में डोली धरती 

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ऊना : मोटर ड्राइविंग व हैवी अर्थ मूविंग मशीनरी ऑपरेटर ट्रेनिंग को करें आवेदन

ऊना : चार रिटायर कर्मचारियों को सौंपे ओल्ड पेंशन अदायगी आदेश पत्र

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धर्मशाला : आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के दो और सहायिका के भरे जाएंगे 12 पद 
कांगड़ा : आर्टिफिशियल ज्वेलरी बनाने का लेना चाहते प्रशिक्षण तो यहां करें संपर्क

HRTC ने जारी की फाइनल लगेज लिस्ट : जानें किस सामान की नहीं लगेगी टिकट, क्या जाएगा फ्री
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माता चिंतपूर्णी मंदिर नवरात्र मेले : बिना पंजीकरण दर्शन की नहीं होगी अनुमति

15 से 25 अक्टूबर तक लागू रहेगी धारा 144

ऊना। जिला दंडाधिकारी ऊना महेंद्र पाल गुर्जर ने आदेश जारी करते हुए कहा कि माता श्री चिंतपूर्णी मंदिर में असूज नवरात्र मेलों के चलते कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिला ऊना में 15 अक्टूबर से 25 अक्टूबर, 2023 तक धारा 144 लागू रहेगी।

उन्होंने बताया कि इस दौरान कानून एवं व्यवस्था में तैनात जवानों को छोड़कर किसी भी व्यक्ति द्वारा आग्नेय अस्त्र लेकर चलने पर पूर्ण पाबंदी रहेगी।

हिमाचल हाईकोर्ट का पंचायती विभाग के तकनीकी सहायकों को न्यूनतम वेतन देने का आदेश

महेंद्र पाल गुर्जर ने बताया कि नवरात्र के दौरान ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए मंदिर न्यास को छोड़कर अन्यों द्वारा लाऊड स्पीकर के इस्तेमाल करने पर पूर्ण मनाही रहेगी।

इसके अतिरिक्त ब्रास बैंड, ड्रम, लंबे चिमटे आदि के लाने पर भी पूर्ण पाबंदी रहेगी। यदि कोई व्यक्ति इन वस्तुओं को अपने साथ लाता है तो उन्हें पुलिस द्वारा स्थापित बैरियर पर ही जमा करवाना होगा। साथ ही इस दौरान पॉलीथीन के इस्तेमाल पर भी पूर्ण प्रतिबंध रहेगा।

अब वक्त नहीं है, जल्दी से जल्दी काम करें शुरू, क्यों बोले जयराम-जानें

जिला दंडाधिकारी ने कहा कि खुले में और सड़क किनारे लंगर लगाने पर भी प्रतिबंध रहेगा और आतिशबाजी इत्यादि की भी अनुमति नहीं होगी। मेलावधि के दौरान पर्ची काउंटर पर   बिना पंजीकरण माता श्री चिंतपूर्णी के दर्शन करने की अनुमति नहीं होगी।

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चंबा में होगी हॉलीवुड फिल्म आइस रोड 2, रोड ऑफ द स्काई की शूटिंग 

पालमपुर में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका के भरे जाएंगे 17 पद

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